अपनी छवि को मत तजिये

जकल खाकी काफी चर्चा में है। कानपुर के बिकरू गांव की दिल दहला देने वाली वारदात और उसके बाद पुलिस के कथित एनकांउटर पर देश–विदेश की मीडि़या चटखारे लेती रही। अपराधी के यहां दबिश देने के तौर–तरीकों और उसके बाद मुठभेड़़ में अपराधी को मार गिराने पर भी कई सारे सवाल उठे।

कई तबके में 8 पुलिस वालों की नृशंस हत्या पर खाकी से सहानुभूति का ज्वार भी उठा‚ मगर खाकी कई मामलों में अब भी आमजन की ‘दोस्त’ और ‘करीबी’ नहीं बन सकी है। मध्य प्रदेश के गुना की घटना को ज्यादा दिन नहीं बीते हैं। सारे देश की मीडि़या ने यह देखा कि किस तरह पुलिसकर्मियों ने एक परिवार के साथ दरिंगदी की।

पति–पत्नी और बच्चों पर अपनी हनक दिखाई। खास बात यह है कि इन पुलिसकर्मियों में महिला आरक्षक भी शामिल थीं। दया और प्यार की प्रतिमूर्ति कहलाने वाली महिला पुलिसकर्मी किसी महिला के खिलाफ इस कदर हिंसक और बे–लगाम हो जाएगी‚ यह वाकई हतप्रभ करता है‚ जबकि पुलिस फोर्स में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के पीछे सरकार की यह मंशा थी कि इससे उस वर्ग को न्याय मिलेगा‚

जिनकी हर शिकायत को अनसुना कर दिया जाता है। सरकार का यह भी सोचना था कि महिला पुलिसकर्मियों की तादाद बढ़ाने से पुलिस की छवि बेहतर होगी‚ महिलाओं की सुरक्षा को पुख्ता किया जा सकेगा और उनके खिलाफ होने वाले अपराधों पर और बेहतर तरीके से लगाम लगाई जा सकेगी। क्या गुना की उन महिला पुलिसकर्मियों को सूरत (गुजरात) की कांस्टेबल सुनीता यादव से सीखना नहीं चाहिए‚

जिन्होंने अपनी ड्यूटी बेहद ईमानदारी और समझदारी के साथ की। बिना ड़रे और दबाव में आए सुनीता ने वही किया‚ जिसकी उन्होंने पुलिस फोर्स ज्वाइन करते वक्त शपथ ली और जो उनके दिल ने गवारा किया। स्वाभाविक रूप से पुलिस के पास बेशुमार ताकत है‚ लेकिन ज्यादातर इसका इस्तेमाल वह गलत तरीके से प्रदर्शित करती है।

यही वजह है कि तमाम अच्छे कामों के बावजूद आमजन में उनकी छवि भ्रष्ट और परेशान करने वाले की बन गई है। महिला पुलिसकर्मियों को सुनीता जैसों से सीखने की जरूरत है। महकमे को भी ऐसे कर्मियों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

पुलिस सुधार के कार्यक्रम को तभी गति और ताकत मिलेगी जब गलत करने वालों को सजा और विवेक पूर्ण ढंग से काम करने वालों को तरक्की मिलेगी। महिला पुलिसकर्मियों को इस मसले पर गहन मंथन करने की महती आवश्यकता है।

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