कानपुर में भी लला के रूप में विराजमान है श्रीराम

के० एस० टी०,कानपुर। अयोध्या की तरह शहर के रावतपुर में भी दशरथ नंदन श्रीराम जी लला के रूप में विराजमान हैं। यह मंदिर, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद आदि प्रमुख संगठनों के पदाधिकारी यहीं बैठकर आंदोलन की रूपरेखा तैयार करते थे।

आरएसएस प्रमुख व विहिप के केंद्रीय नेतृत्व से जो भी संदेश आता, यहां चर्चा होती और फिर कानपुर व आसपास के शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता। शिलापूजन, चरण पादुका पूजन समारोह सब यहीं किए गए। मंदिर आंदोलन के प्रमुख आचार्य गिरिराज किशोर, महंत नृत्यगोपाल दास, विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंहल समेत तमाम बड़े नेता और संत यहां आए थे और राम भक्तों को संबोधित किया।

मंदिर परिसर स्थित श्रीराम लला इंटर कॉलेज के संस्थापक प्रधानाचार्य रहे पं. कालीशंकर अवस्थी के नेतृत्व में मंदिर में आंदोलन से जुड़े कार्यक्रमों की रूपरेखा बनती थी। शहर में विहिप से जुड़कर उन्होंने यहां राम मंदिर आंदोलन को हवा दी। लोगों को संघ की शाखाओं में वे एकत्र करते। स्कूल में पढऩे वाले छात्रों को मंदिर आंदोलन से उन्होंने जोड़ा।

उनकी एक आवाज पर रावतपुर गांव ही नहीं बल्कि आसपास के मोहल्लों में रहने वाले लोग भी मंदिर में जुट जाते और फिर रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे और कसम राम की खाते हैं हम मंदिर वहीं बनाएंगे का नारा लगता था। यहां आने वाले श्रीराम भक्त पहले रामलला के दर्शन करते और फिर कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से पहले नारे लगाते।

मंदिर में होने वाले कार्यक्रमों में अवध बिहारी मिश्र, कैलाश शुक्ला, रामचंद्र दीक्षित, विश्वनाथ सिंह चंदेल, गिरिजा शंकर दीक्षित आदि लोग अग्रणी भूमिका निभाते थे। शिलापूजन में उमड़ी भीड़ ने आंदोलन से जुड़े लोगों का उत्साह कई गुना बढ़ा दिया था। यहां के लोगों के उत्साह को देखकर खुद अशोक सिंहल ने कहा था कि मुझे पूर्ण विश्वास है कि राम लला का मंदिर बनने से कोई रोक नहीं सकता।

आंदोलन के समय बजरंग दल के महानगर संयोजक रहे अवध बिहारी मिश्र के मुताबिक मंदिर आंदोलन को धार देने के लिए सिर्फ अशोक सिंहल, महंत नृत्य गोपाल दास और आचार्य गिरिराज किशोर ही नहीं बल्कि चंपत राय, राजेंद्र पंकज, मोहन जोशी भी मंदिर आए थे। इस आंदोलन से हर हिंदू जुड़े इसके लिए 1988 में श्रीराम नवमी के दिन भव्य शोभायात्रा निकाली गई थी। हर घर पर धर्मध्वजा फहराई गई थी।

यह परंपरा आज भी कायम है। रामलला मंदिर से शुरू हुई इस यात्रा के बाद तो कानपुर देहात, फतेहपुर के साथ ही बुंदेलखंड के अन्य जिलों में भी इसका आयोजन शुरू हुआ। रामलला मंदिर का इतिहास 150 साल से अधिक पुराना है। महाराजा रावत रणधीर सिंह का विवाह मध्य प्रदेश के रीवा में हुआ था।

महारानी रौताइन बघेलिन जब विदा होकर आईं तो अपने साथ सिंहासन पर विराजमान रामलला की मूर्ति भी लेकर आईं।उन्होंने ही मंदिर की स्थापना कराई। मंदिर के सर्वराकार वीरेंद्र जीत सिंह हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *