बढ़ता कोरोना तो नहीं रोक देगा गांवों की सरकार के गठन को!

पूर्व की अखिलेश सरकार के परिसीमन पर योगी सरकार की चुनाव कराना था मजबूरी

पंचायत चुनाव से मिल जाता है आगामी सरकार का आईडिया

आपत्तियां फिर हुई शुरू सुप्रीम कोर्ट का फिर हो सकता है फैसला


के० एस० टी०,कानपुर संवाददाता। पंचायत चुनाव की आपत्तियां आए दिन उठती ही जा रही है। अब एक बार फिर से एक रिट सुप्रीम कोर्ट में लगाई गयी है। जबकि उच्च न्यायालय से स्पष्ट आदेश है कि जो तारीख तय है। उसमें चुनाव हो जाने चाहिए। जो प्रदेश सरकार की मजबूरी है। जबकि सरकार पूर्व पूर्व की अखिलेश सरकार के परिसमिन पर चुनाव कराने के पक्ष में पहले ही नहीं दिख रही थी।

किन्तु उच्च न्यायालय का आदेश वह टाल भी तो नहीं सकते है। किन्तु जिस तरह से कोविड-19 की महामारी वाले मरीज जिस तरह से उत्तर प्रदेश में बढ़ रहे हैं। उससे सियासी गलियारों में पंचायत चुनाव में एक के बाद एक के रूप में खड़ी हो रही नई अड़चनों से चर्चाएं गर्म हैं कि कहीं एक बार फिर से यह चुनाव न टल जाए। उसके पीछे तर्क यह है कि त्योहार में अगर इसी तरह से कोरोना के मरीजों की.

तादाद बढ़ती रही तो पंचायत चुनाव किस तरह से निकलेंगे। आपको बताते चलें कि गांवों की सरकार माने जाने वाले पंचायत चुनाव वैसे तो छोटे चुनाव होते हैं किन्तु इन चुनावों से सत्ता दल को विधानसभा चुनावों का बड़ा रुझाना मिल जाता है। हालांकि पंचायत चुनाव की समयावधि पूरी हो जाने पर प्रदेश सरकार चुनाव कराने में इसलिए देरी कर रही थी ताकि वे अपने मुताबिक नये.

परिसीमन से चुनाव कराएं किन्तु उच्च न्यायालय के आदेश प्रदेश सरकार को प्राप्त हुए कि इस अवधि तक चुनाव करा दें। उसके लिए चाहे कुछ भी करना हो। चूंकि सरकार ने फटाफट आरक्षण कर नया परिसीमन जारी कर दिया। जिसमें आपत्तियां भी दर्ज हुई। उधर सर्वोच्च न्यायालय से यह आदेश पारित हो गया कि 2015 के आधार पर ही चुनाव हो। जिससे सरकार के नए परिसीमन पर पानी फिर गया। क्योंकि 2015 के गांवों का परिसीमन पूर्व की अखिलेश सरकार ने अपने मुताबिक कराया था।

ऐसी सूरत में दूसरे के परिसीमन से होने वाले चुनाव में योगी सरकार को नुकसान का भी अंदेशा होना भी तय था। फिर भी योगी सरकार कोर्ट के आदेश पर ही चुनाव के लिए तैयार थी किन्तु इधर निरंतर बढ़ रही आपत्तियों के साथ कोरोना के बढ़ रहे मरीजों के चलते यह चुनाव झंझावतो में फंसते दिख रहे हैं। चर्चा तो यहां तक है कि कही बढ़ते मरीजों को देख सरकार को आपातकाल न लगाना पड़े। जिससे चुनाव अपने आप स्थगित हो जाएंगे।

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