अब घर पहुंचकर फिर से जीने की उम्मीद

के० एस० टी०,नई दिल्ली संवाददाता। दिल्ली में लगे लॉकड़ाउन से वहां पर काम करने वाले प्रवासी मजदूरों का पलायन जारी है। दिल्ली से प्रवासी मजदूर कानपुर होते हुये अपने–अपने घरों को जा रहे हैं। शासन–प्रशासन भी अब मजदूरों को उनके घर सही–सलामत पहुंचाने को लेकर अलर्ट हो गया है‚ जिसको लेकर बसें चलायी गई हैं।

इसके चलते अब हाईवे पर पैदल‚ रिक्शा व साइकिल से चलने वाले मजदूरों की संख्या में कमी आयी है। अब हाईवे पर बसों या फिर ट्रकों से अपने घरों को जा रहे मजदूर दिखायी दे रहे हैं। मजदूरों का कहना है कि कोरोना ने सब कुछ तबाह करके रख दिया है। रोजी–रोजगार तो खत्म हो गया है। अब यदि सही सलामत घर पहुंच गये तो.

फिर से जीने की उम्मीद जगायेंगे‚ लेकिन जब तक कोरोना का असर है‚ हम वापस नहीं जायेंगे। प्रवासी मजदूरों की हालत किसी से छिपी नहीं है। उन्हें अपने घरों को पहुंचने के लिए किन–किन मुसीबतों का सामना करना पड़़ रहा है‚ यह उनका दिल ही बता सकता है। शासन–प्रशासन के जागने के पहले मजदूरों को पैदल चलने के लिए मजबूर होना पड़़ा।

मजदूर भूखे–प्यासे तपती धूप में अपने–अपने घरों को बढ़ते रहे। किसी ने अपनी भूख मिटाने के लिए बांसी रोटियां पानी में डु़बोकर खायी तो किसी ने रास्ते में जो भी खाने को मिला‚ उसे खाकर अपना पेट भर लिया। रास्ते में बच्चे बीमार पड़़ गये तो मजदूरों ने उन्हें पीठ में बांध लिया। जल्दी घर पहुंचने की आस में यह मजदूर ट्रकों व.

लोड़रों में भूसे की तरह भरकर अपने घरों की ओर बढ़े। मजदूरों की यह हालत देखकर हर किसी की आंखे भर आयीं। सरकार के निर्देश पर प्रशासन ने भी मजदूरों को उनके घर सुरक्षित पहुंचाने के लिए कमर कस ली है। हाईवे पर अभी तक प्रवासी मजदूरों की जो तस्वीर देखने को मिल रही थी‚ उसमें बदलाव आना शुरू हो गया है।

जो मजदूर अभी तक घर जाने के लिए पैदल रास्ता तय कर रहे थे‚ उन्हें अब बसों व ट्रकों से उनके घर भेजा जा रहा है। रास्ते में समाजसेवी संस्थाओं के लोग बस व ट्रक रोककर मजदूरों को खाने–पीने का सामान उपलब्ध करा रहे हैं। यही नहीं‚ जो मजदूर ट्रकों में भरकर नौबस्ता‚ रामादेवी चौराहे पहुंच रहे हैं‚ उन्हें वहां पर ट्रक से उतारकर बसों से उनके घर भेजा जा रहा है।

झकरकटी बस अड्डे़ से भी बसें चलायी जा रही हैं। प्रशासन पूरी कोशिश में लगा है कि अब मजदूरों को किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो। वहीं‚ मजदूरों का कहना है कि उन्होंने रास्ते में इतनी तकलीफ सह ली है कि न उन्हें भूख–प्यास समझ में आ रही है और न ही धूप व गर्मी का कोई असर हो रहा है। बस‚ उनकी यह लालसा है कि किसी तरह अपने घर पहुंच जायें।

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