खाकी गला कसने पर कैसे बनाती है रस्सी का सांप!

सात साल पूर्व एक फर्जी लूट खुलने का खुलासा किया वर्दीधारी ने ही
मुख्यमंत्री के आदेश के चार साल के बाद अब जांच हो रही है कमिश्नर के आदेश पर
ए० डी०सी०पी० दक्षिण कर रहे हैं पूरे मामले की जांच


के० एस० टी०,कानपुर नगर संवाददाता। वर्तमान दरोगा व तत्कालीन समय के बर्रा थाने के हेड कांस्टेबल दयाशंकर वर्मा के मामले की 7 साल बाद जांच में यह बात सामने आ गई है कि पुलिस फंसने पर कैसे रस्सी का सांप बनाती है। जिसमें उच्चाअधिकारियों को भी इस तरह के मामले संज्ञान में रहते हैं। जिसमें एक लूट खोलने के लिए पुलिस ने दो बेगुनाहों समेत एक हिस्ट्रीशीटर को किस तरह से जेल भेजा? फिर उसके बाद रिकार्डिग के आधार पर किस तरह से हेड कांस्टेबल दयाशंकर वर्मा पर दोष मढ़कर थानेदार व एस आई को बचा लिया गया।

वर्तमान कमिश्नर असीम अरुण की ए०डी०सी०पी० मनीष सोनकर को दी गई जांच में यह है तो लगने लगा है कि पीड़ित हेड कांस्टेबल दयाशंकर वर्मा का कुसूर इतना ही था की उसने तत्कालीन थानाध्यक्ष व विवेचक के आदेशों के तहत इस मामले में शामिल था। जांच में यह बड़ा रोचक मामला सामने आ रहा है। पीड़ित हेड कांस्टेबल दयाशंकर वर्मा को जब 2017 तक उच्चाअधिकारियों से न्याय नहीं मिला तो वह कैंसर पीड़ित अपनी पत्नी केसवती बच्चो को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिला और सारे रिकार्डिग व.

अन्य साक्ष्य अपनी बेगुनाही के दिखाये तो उन्होंने जांच व दोषी जनों के खिलाफ मुकदमा लिखने के आदेश दे दिये और चार साल तक हेड कांस्टेबल का मुख्यमंत्री का आदेश किया प्रार्थना पत्र दबाया जाता रहा। अन्ततः कानपुर में कमिश्नरी लागू होने पर 20 अक्टूबर 2021 को कमिश्नर असीम अरुण ने मामले की जांच ए०डी०सी०पी० मनीष सोनकर को दी। जो पूरे मामले की जांच कर रहे हैं। पीड़ित वर्तमान दरोगा ने बर्रा थाने की अपराध संख्या-507/2014 को बर्रा में जरौली निवासी ललित सोनी के साथ हुई लूट की घटना में पुलिस ने मनोज गुप्ता,

मोनू सिंह हिस्ट्रीशीटर नीतू नाई को लूट का माल व तमंचा लगाकर जेल भेजा था। जिसमें आई०जी० आशुतोष पाण्डेय की पीड़ित मनोज गुप्ता की पत्नी मधु गुप्ता की रिकार्डिग दिखा कर मुख्य अपराध संख्या-517/214 धारा 386, 389, 506 आई०पी०सी० की धारा के तहत तत्कालीन गुजैनी चौकी के हेड कांस्टेबल दयाशंकर वर्मा को जेल भिजवाया था। जिसमें दयाशंकर को जेल भी जाना पड़ा था। इसमें दया शंकर वार्म ने मुख्यमंत्री से रिकार्डिग पर जिसमें उस पर मुकदमा किया गया था। उसमे साक्षी थे कि.

जब विवेचक वीरेंद्र प्रताप सिंह और उसके बीच वार्ता की रिकार्डिग के आधार पर मुकदमा दर्ज किया गया तो आई० जी० वीरेन्द्र प्रताप सिंह पर मुकदमा दर्ज क्यों नहीं तत्कालीन समय में कराया गया? मामला फर्जी था तीनों फर्जी फंसने वालों का मुकदमा वापस क्यों नहीं हुआ? इस तरह के उसके सवाल उठाने पर जांच कर्ता भी कार्यवाही में सोच में पड़े हैं। क्योंकि मामला सीनियर आई०पी०एस० अधिकारी का है। इसमें होता क्या है? दूध का दूध पानी का पानी ए०डी०सी०पी० की जांच में हो पायेगा या नहीं। शेष अगले अंक में पढ़ें….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *