सनातन संस्कृति व सभ्यता का प्रतीक है रंगोत्सव का पावन पर्व होली

देश में आज युवाओं के बहुत बड़े वर्ग के लिए होली के मायने तेजी से बदलते जा रहे हैं, कुछ लोग आधुनिकता की चकाचौंध में अपनी प्राचीन संस्कृति व सभ्यता के वास्तविक मायने तेजी से भूलते जा रहे हैं। आज चंद लोगों अपने ही देश में पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण करने के चलते तेजी से बदले हुए परिवेश में होली के पावन पर्व के प्राचीन पूज्यनीय स्वरुप को.

परिवर्तित करने का कार्य कर रहे हैं। आज के युवाओं के एक बहुत बड़े वर्ग के लिए होली का मतलब संस्कृति सभ्यता व आध्यात्मिक दृष्टि से बिल्कुल भी नहीं है, उनके लिए यह त्यौहार डीजे के तेज शोरगुल में फिल्मु गानों पर नाचकर हुड़दंग मस्ती नशाखोरी करने का छुट्टी में एंजॉय करने का एक दिन मात्र बनता जा रहा है,

जो स्थिति देश की भारतीय सनातन संस्कृति के लिए सरासर अनुचित है। आज समय की मांग है कि यह विचार किया जाए कि देश में व्यवसायिक दौड़ की आपाधापी और भागदौड़ में होली का पावन पर्व भी लोगों के बीच क्यों एक औपचारिकता बनता जा रहा है, इस पर सनातन धर्म के सभी लोग विचार करें। आज देश में कुछ लोगों के लिए.

दिखावा पसंद बन चुकी महानगरीय संस्कृति के चलते यह त्यौहार भी धन दौलत व ताकत के दिखावे की भेंट चढ़ता जा रहा है, चिंताजनक बात यह हैं कि कुछ लोग तो पावन पर्व होली पर शराब के नशे में चूर होकर घर परिवार व समाज के लिए बड़ी गंभीर समस्या तक उत्पन्न कर लेते हैं।

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