के० एस० टी०,कानपुर नगर संवाददाता। गाजियाबाद में स्कूल बस से बाहर सिर निकालने पर एक मासूम की जान चली गई। कहने को ये एक हादसा है, लेकिन सबक है उन अभिभावकों के लिए जो नियम-कायदे ताक पर रखकर दौड़ रहे स्कूल वाहनों से अपने बच्चों को भेजते हैं। अधिकांश स्कूल वाहन मानकों का पालन ही नहीं करते हैं। स्कूल प्रबंधन भी बसों का लंबा-चौड़ा किराया तो वसूलता है लेकिन मासूमों की सुरक्षा को नजरअंदाज कर दिया जाता है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महानगर में 216 बसें ऐसी हैं जो फिटनेस टेस्ट कराए बगैर सड़कों पर दौड़ रही हैं। बिना फिटनेस के चल रहीं ये बसें मासूमों को किसी अनहोनी का शिकार बना सकती हैं। प्रस्तुत है बच्चों की जान से खिलवाड़ कर दौड़ रहे स्कूली वाहनों की पड़ताल करती रिपोर्ट…
बिना फिटनेस दौड़ रहीं 40 प्रतिशत स्कूली बसें-: आरटीओ कार्यालय में 175 स्कूली वैन व 526 स्कूली बसें पंजीकृत हैं। इनमें से 216 बसों की फिटनेस नहीं कराई गई है। कई बसों में विंडो बार भी नहीं है। नियमानुसार, हर बस में पांच इंच के फासले पर पांच विडो बार जरूरी है ताकि बच्चे खिड़की से बाहर सर न निकाल सके। कामर्शियल वाहनों को हर दो वर्ष में फिटनेस टेस्ट करवाना जरूरी है। इसमें स्कूली बसें भी शामिल हैं। टेस्ट में पास होने के बाद ही वाहन सड़क पर चल सकते हैं। कोरोना संक्रमण के दौरान वाहनों का फिटनेस टेस्ट कराने के लिए 31 अक्टूबर तक की छूट दी गई थी। जिन वाहनों की फिटनेस की वैधता समाप्त हो गई थी, उनसे जुर्माना नहीं लेने के निर्देश थे। छूट की अवधि समाप्त होने के बाद भी बड़ी संख्या में कामर्शियल वाहनों का फिटनेस टेस्ट नहीं कराया गया। इनमें 216 स्कूली बसें भी है। आरआइ अजीत सिंह के मुताबिक, स्कूल बसों के मालिकों को नोटिस भेजा गया है। बसों में विडो बार लगाने के निर्देश दिए गए हैं।