कोरोना काल का असर तिलहनी फसलो पर भी पड़ा

के० एस० टी०, कानपुर संवाददाता। कोरोना ने न केवल आम आदमी की चिंता बढ़ाई है बल्कि अन्नदाताओं पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है। तिलहन व दलहन की जो प्रजातियां अन्नदाताओं के खेतों तक छह महीने पहले पहुंच जानी चाहिए थीं वह अभी नोटीफाई तक नहीं हो पाई हैं।

चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय ने लाॅक डाउन से पहले सरसों, अलसी व मसूर की नई प्रजातियां विकसित की थीं। इसमें सरसों में दो, अलसी की दो, मसूर की एक मसूर प्रजाति शामिल है। कृषि सहकारिता व किसान कल्याण मंत्रलाय के पास इसे नोटीफाई के लिए भेजा गया है।

इसके अलावा विश्वविद्यालय में विकसित एकमात्र अर्पणा अलसी प्रजाति को ही नोटीफाई किया जा सका है। इस प्रजाति से जल्द ही बीज उत्पादन शुरू किया जाएगा। किसानों के खेतों तक पहुंचेगी। यह सीड चेन में आ गई है। अब सीएसए के कृषि वैज्ञानिक इस वर्ष विकसित की गई बीजों की शेष प्रजातियों को किसानों तक पहुंचाने रणनीति तैयार कर रहे हैं।

निदेशक शोध प्रो. एचजी प्रकाश ने बताया कि शोध कार्य लगातार चल रहा है। कोरोना वायरस के चलते हुए लाॅक डाउन में दलहनी व तिलहन की पांच प्रजातियों को नोटीफाई नहीं किया जा सका जबकि वह विकसित हो चुकी हैं। उनका परीक्षण भी पूरा हो चुका है।

बिना नोटीफाई के इन प्रजातियों का लाभ किसानों तक नहीं पहुंच सकता है। इन्हें सीड चेन मेें लाने के लिए कृषि सहकारिता व किसान कल्याण मंत्रलाय के पास भेजा जा चुका है। उम्मीद है कि जल्द ही यह नोटीफाई होने के साथ सीड चेन में आ जाएंगी। उसके बाद इसके बीज किसानोें के खेतों तक पहंुचकर उन्हें बंपर पैदावार देने लगेंगे।

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