राजनीतिक लड़ाई लड़नी है तो दामन रखना होगा साफ

राहुल गांधी और साथी कांग्रेसी या भाजपा के नेता इन दिनों बार-बार केवल आपातकाल के घाव क्यों याद कर रहे हैं? देश की आबादी के एक बड़े आयु वर्ग ने वह दौर देखा नहीं और विभाजन की तरह उस त्रासदी की पुनरावृत्ति अब संभव नहीं है। इसलिए मैं तो 1986 की सुर्खियों की याद दिलाना उचित समझता हूं। मास्टर राहुल के पिता श्री राजीव गांधी सत्ता में थे। एक नहीं, अनेक छापे लगातार पड़ने से बंबई (अब मुंबई) को कैपिटल ऑफ द रेड्स’ (छापे की राजधानी) लिखकर छापा जा रहा था। स्वाभाविक है कि किशोर वय के राहुल को उस समय इन खबरों की जानकारी नहीं रही।

उनके अपरिपक्व सलाहकार तो अनजान हैं, लेकिन पार्टी की सर्वोच्च नेता सोनिया गांधी जी को तो यह याद होगा। मजेदार बात यह है कि अयोध्या में मंदिर के दरवाजे खुलवाने वाले राजीव राज से अब मंदिर निर्माण में लगे भाजपा के नेता भी उस दौर में बॉलीवुड की सफाई के लिए हुई छापेमारी की याद नहीं दिला रहे। मीडिया के हमारे काबिल मित्र तो उस समय की फाइलें देखकर अथवा हम जैसे पुराने पत्रकारों से बात करके क्रांतिकारी प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया पर नए-पुराने तथ्यों को जनता-जनार्दन के सामने रख सकते हैं। मेरा उद्देश्य हाल में पड़े छापों को सही या.

गलत ठहरना अथवा सरकार का समर्थन करना कतई नहीं है। यों इन दिनों कुछ संपादक गण हमें सलाह देते हैं कि अब उस दौर की बात न करें। राजीव राज के प्रारंभिक वर्ष में ही मुंबई आयकर विभाग ने मुंबई में करीब छह सौ छापे मारे थे। उस जमाने में बॉलिवुड पर राज करने वाले बड़े निर्माता यश चोपड़ा, गुलशन राय, सुभाष घई सहित अनेक फिल्मी हस्तियों के ठिकानों पर छापे डाले गए थे। उस समय तो नगद और काले धन से फिल्म का धंधा अधिक चलता था। तब आयकर विभाग ने यह राज खोला था कि कई निर्माता हर महीने करीब पचास करोड़ का काला धन बना रहे हैं।

इस तरह करोड़ों रुपयों की गड़बड़ी उजागर हुई। जिन लोगों और स्टूडियो पर छापे पड़े, वे सरकार विरोधी नहीं, बल्कि कई सत्ताधारी नेताओं के मित्र थे। अमिताभ बच्चन तो राजीव गांधी के साथ चुनाव जीतकर आए थे। राजेश खन्ना, दिलीप कुमार या निर्माता सुभाष घई, यश चोपड़ा, बी आर चोपड़ा आदि कांग्रेस के मित्र माने जाते थे। दूसरी तरफ नेहरू-इंदिरा युग के करीबी बजाज समूह, डालमिया-जैन समूह, गोदरेज समूह पर भी छापे पड़े। इसम कोई शक नहीं कि उस समय और आज भी किसी व्यक्ति या समूह से आयकर की पूछताछ का यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि.

उसने अपराध किया है। आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई द्वारा अदालत में साबित होने पर ही कानूनी दंड दिया जा सकता है। कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों से बहुत अच्छे संबंध रखने वाले देश के सबसे बड़े मीडिया संस्थान के प्रमुख अशोक जैन पर विदेशी मुद्रा से जुड़े एक मामले की फाइल खोलकर आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय से पूछताछ हो रही थी। प्रदेशों में भी कुछ प्रकाशन समूहों का हिसाब-किताब टटोला जा रहा था। मतलब यह कि यदि सरकार किसी की हो और आपको अपने संपर्क और प्रभाव की कितनी ही गलत-सही धारणा हो,

यदि बही-खाता गड़बड़ है और जाने-अनजाने आपने करोड़ों कमाए और रिकॉर्ड में नहीं दिखाए, तो मुश्किल में पड़ सकते हैं। इंदिरा-राजीव युग की बात आप पुरानी मान सकते हैं। पिछले दो दशक में माधुरी दीक्षित, सलमान खान, संजय दत्त, एकता कपूर, सोनू निगम, सोनू सूद, रानी मुखर्जी, कैटरीना कैफ आदि के घर पर भी आयकर के छापे पड़ते रहे हैं। माधुरी दीक्षित के घर पर काला धन तलाशने के लिए दीवार तक तोड़नी पड़ी थी। इन छापेमारी की खबरें दो-चार दिन चर्चा में रहती थीं, और फिर नियम- कानून के अनुसार जब्ती, जुर्माना या निर्दोष साबित होने की खबरें सामने नहीं आती रहीं।

वैसे भी भारतीय व्यवस्था में कानूनी प्रक्रिया वर्षों तक चलती है। आजकल नियम-कानून के बजाय सरकार से पूर्वाग्रह और ज्यादती का तमगा लगाकर क्रांतिकारी और शहीद कहलाने का चलन हो गया है। इस समय अनुराग कश्यप, तापसी पन्नू, विकास बहल, विक्रमादित्य मोटवाने और उनसे जुड़ी कंपनियों के साथ रिलायंस इंटरटेनमेंट कंपनी से भी पूछताछ हो रही है, और राहुल गांधी बार-बार अंबानी का नाम लेते हैं। यह कंपनी अनिल अंबानी की रही है। अनिल अंबानी तो राजनीति में भी रहे हैं और कांग्रेस तथा समाजवादी पार्टियों से उनके अधिक घनिष्ठ रिश्ते थे।

संभव है, वर्तमान सरकार से भी उनके संबंध हों, लेकिन हिसाब-किताब , अदालत आदि में तो नियम-कानून और न्याय ही साथ देगा। अनुराग कश्यप और उनके साथ अन्य लोगों के ठिकानों पर छापेमारी में छह-सात सौ करोड़ रुपयों के आयकर का हिसाब खंगाला जा रहा है। अब विवाद इस बात का है कि अनुराग कश्यप और तापसी पन्नू ने कुछ अर्से से सोशल मीडिया पर भाजपा सरकार-विरोधी अभियान चला रखा था। लोकतंत्र में यह उनका अधिकार है। वे पूरी तरह राजनीति में नहीं हैं, लेकिन यदि वे राजनीतिक लड़ाई लड़ना चाहते हैं, तो क्या उन्हें अपना दामन साफ नहीं रखना होगा?

सरकार को गालियां देते हुए अपराध करने का हक क्या किसी को मिल सकता है? बीती सदी के आठवें दशक में एक प्रकाशन संस्थान से जुड़े परिवार के सबसे बुजुर्ग उद्योगपति को आर्थिक गड़बड़ी के एक मामले में अदालत ने बारह साल की जेल की सजा सुना दी थी। सत्ता में रहें या समझौते करें अथवा टकराव करें, कानून का लाभ-नुकसान उठाने के लिए तैयार रहना होगा।

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