आजमगढ़ में विकास की कहानी बयां कर रहा बांस का पुल

के० एस० टी०,आजमगढ़ संवाददाता। आजादी के बाद विकास कार्य तो बहुत हुए, लेकिन अरुसा गांव के समीप तमसा नदी पर पक्के पुल का निर्माण नहीं हो सका। आधा दर्जन गांवों के लोग बांस के बने अस्थाई पुल से आवागमन करने को विवश हैं। यह पुल हर पल खतरे को दावत देता है। सबकुछ जानने के बावजूद प्रशासन व जनप्रतिनिधि गंभीर नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि लोगों ने पक्का पुल बनाने की मांग नहीं की, लेकिन जिम्मेदार

अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों ने आश्वासन के सिवाय आज तक कुछ नहीं मिला। तमसा नदी किनारे बसा अरुसा गांव अपने में इतिहास को समेटे हुए हैं। बाबा दुखहरण की यह तपोस्थली आज भी विकास के लिए किसी मसीहा के इंतजार में है। गर्मी के दिनों में बांस के पुल के सहारे लोग आते-जाते हैं, लेकिन नदी के उफान के समय लोगों को तहसील मुख्यालय जाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है।

नदी पार ग्राम भंवरूपुर, काशीपुर, कोदई का पूरा, पूरा चित्तू, शमशाबाद, काशीपुर, बरसातीगंज, बिरहड़ के लोग बांस के पुल से आते-जाते हैं। पक्का पुल बन जाता तो बाकरकोल, युधिष्ठिर पट्टी, मड़ना, मुबारकपुर गांव के लोगों को दुर्वासा धाम या फिर फूलपुर रेलवे स्टेशन, पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे और तहसील फूलपुर जाने के लिए रास्ता आसान हो जाता। हरीलाल की पहल से राह होती आसान अरुसा गांव के.

हरीलाल गोंड की हर साल की पहल लोगों की राह का आसान कर देती है। वह हर साल बांस के पुल का निर्माण लोगों के सहयोग करते हैं। पहले गांव के ही फालू गोंड और मिश्र बाबा मिलकर इस पुल का निर्माण करते थे। इन दोनों के निधन के बाद हरी लाल ने इसका बीड़ा उठाया। इसके बन जाने से राहगीर, साइकिल व बाइक से लोग आजमगढ़ या लखनऊ जाने के लिए पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे पर चढ़ते हैं।

यहां से पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे की दूरी दो और रेलवे स्टेशन फूलपुर की दूरी 12 किलोमीटर है। शत्रुघ्न सिंह, रणजीत सिंह, रमेश गोंड, सत्यनारायण सिंह, मलखान सिंह, शांति सिंह, कैलाश सिंह, स्वार्थ राजभर, संतोष मौर्य, संजय मौर्य आदि बताते हैं कि हम लोगों को तहसील फूलपुर, मिर्च मंडी या फूलपुर रेलवे स्टेशन जाने के लिए बांस के पुल के सहारे जिदगी दांव पर रखकर जाना पड़ता है।

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