मंहगाई से मची हाय-तौबा

हले मुट्ठी भर का पैसा लेकर जाते थे और झोला भर सामान लेकर आते थे किन्तु आज झोला भर पैसा लेकर जाते है और मुट्ठी भर सामान लेकर आते हैं। इस तरह के व्यंग्य करने से आज आम व्यक्ति नहीं चूक रहा है। उसमें चाहे अहम घर गृहस्थी की रोज इस्तेमाल होने वाला सामान हो या अन्य कुछ चूंकि वर्तमान समय में एडमिशन सत्र चल रहा है। सरकार ने स्कूलों की फीस बढ़ाने का आदेश क्या दे दिये कि स्कूल संचालकों ने मनमाफिक डोनेशन फीस बढ़ा दी है। इसके साथ ही कोर्स की कॉपी किताबों में आम आदमी का बजट बिगाड़ कर रख दिया है।

 

जिससे बड़े परिवार वाले मध्यम वर्गीय परिवार के लोग इस बढ़ी महंगाई से बुरी तरह से त्रस्त हैं। मंहगाई का असर यूं तो उच्च वर्ग को छोड़कर सभी में पड़ रहा है किन्तु मध्यम वर्गीय परिवार बुरी तरह से परेशान है। नौजवान पढ़े-लिखे छात्र-छात्राएं नौकरी के लिए परेशान हैं किन्तु कोरोना में नौकरी छूटने के बाद नौकरी नहीं मिल रही है। लोकसभा में बेरोजगार शिक्षकों की बड़ी तादाद को देखकर केन्द्र सरकार खुद चिंतित है। इसका हल निकालने के लिए वह प्रदेश सरकारों से आग्रह कर रही है कि वह बैकेसियां निकाले जिससे बेरोजगारी दूर हो सके।

 

इस मंहगाई में बेरोजगारों के लिए घर-परिवार में जीना मुश्किल हो रहा है। घर वालो के आए दिन के तानों से वह बुरी तरह से परेशान हैं। जिससे देश मे आत्महत्याओ का ग्राफ बढ़ रहा है। चौकाने वाली बात ये है कि लोकसभा में जो पेश हुआ उसमें अनपढ़ लोगों की बेरोजगारी का प्रतिशत काफी कम था किन्तु शिक्षित बेरोजगारों की संख्या करोड़ो में थी।

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