के० एस० टी०,केदारनाथ संवाददाता। उच्च हिमालय में स्थित केदारपुरी का विषम भूगोल श्रद्धालुओं की सांस ही नहीं अटका रहा, पैदल मार्ग पर बड़ी संख्या में घोड़ा-खच्चर की मौत का कारण भी बन रहा है। जांच में पता चला है कि घोड़ा-खच्चर की मौत तीव्र पेट दर्द (शूल), पानी की कमी, बर्फीला पानी पीने और अधिक कार्य लिए जाने से हो रही है। कपाट खुलने के बाद से अब तक महज 23 दिन में 400 से अधिक घोड़ा-खच्चर की मौत हो चुकी है।
दरअसल, उच्च हिमालयी क्षेत्र में घोड़ा-खच्चर को सिर्फ गर्म पानी ही पिलाया जाता है, लेकिन इस बार पैदल मार्ग के पड़ावों पर गीजर की व्यवस्था न होने से उनके लिए गर्म पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा। इससे शरीर में पानी की कमी होने से घोड़ा-खच्चर मौत के मुंह में चले जा रहे हैं। जबकि, यमुनोत्री धाम में पांच किमी पैदल मार्ग पर दो जगह गीजर की व्यवस्था है। इससे वहां घोड़ा-खच्चर को पर्याप्त गर्म पानी मिल जा रहा है। वहां तीन मई से अब तक सिर्फ 25 घोड़ा-खच्चर ने ही जान गंवाई।
शरीर में पानी की कमी व असहनीय दर्द मौत का कारण-: केदारनाथ जाने के लिए गौरीकुंड से 16 किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। पूर्व में पैदल मार्ग के पड़ावों पर प्रशासन की ओर से गर्म पानी के टैंक बनाए गए थे। लेकिन, रखरखाव न होने के कारण अब वह अनुपयोगी हो गए हैं, जिससे घोड़ा-खच्चर बिना पानी के ही या थोड़ा-बहुत बर्फीला पानी पीकर इतना लंबा सफर तय कर रहे हैं। इससे शरीर में पानी की कमी व असहनीय दर्द उनकी मौत का कारण बन रहा है। जबकि, घोड़ा-खच्चर को रोजाना कम से कम 30 लीटर पानी पिलाया जाना जरूरी है।
हैरत देखिए कि पैदल मार्ग पर घोड़ा-खच्चर के लिए न तो पर्याप्त पौष्टिक आहार की व्यवस्था है, न नियमित स्वास्थ्य जांच की ही। केदारनाथ पैदल मार्ग पर प्रतिदिन पांच से छह हजार घोड़ा-खच्चर की आवाजाही होती है। लगभग 40 प्रतिशत श्रद्धालु घोड़ा-खच्चर से ही केदारनाथ पहुंचते हैं। इसके अलावा सामान ढोने का कार्य भी घोड़ा-खच्चर से ही होता है। इस वर्ष यात्रा के लिए 8200 घोड़ा-खच्चर का पंजीकरण हुआ है। जबकि, बिना पंजीकरण के भी हजारों घोड़ा-खच्चर पैदल मार्ग पर आवाजाही कर रहे हैं।
इन घोड़ा-खच्चर की देखरेख के लिए पशुपालन विभाग की ओर से दो पशु चिकित्सक गौरीकुंड व एक सोनप्रयाग में तैनात किया गया है। लिनचोली व केदारनाथ में दो-दो पशुधन प्रसार अधिकारी तैनात है। समझा जा सकता है कि घोड़ा-खच्चर की कैसी देखरेख हो रही होगी। बीते नौ साल तक रुद्रप्रयाग जिले में मुख्य पशु चिकित्साधिकारी के पद पर तैनात रहे डा० रमेश चंद्र नितवाल कहते हैं कि गर्म पानी की व्यवस्था न होने के कारण पैदल मार्ग पर संचालक ग्लेशियर का.
पानी ही घोड़ा-खच्चर को पिलाने की कोशिश करते हैं। लेकिन, वह इस बर्फीले पानी को नहीं पीते, जिससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है। वहीं, घोड़ा-खच्चर के खाने के लिए हरी घास भी उपलब्ध नहीं है, जिससे उन्हें भूसा, चना व गुड़ दिया जाता है। इससे उनकी आंतों में गांठ बन जाती है और मूत्र भी बंद हो जाता है। यही घोड़ा-खच्चर की मौत की मुख्य वजह है।
रिकार्ड में सिर्फ 86 घोड़ा-खच्चर की मौत-: सरकारी रिकार्ड के अनुसार अब तक सिर्फ 86 घोड़ा-खच्चर की ही जान गई है। दरअसल, रिकार्ड में सिर्फ उन्हीं घोड़ा-खच्चर की मौत दर्ज की जा रही है, जिनका पंजीकरण हुआ है। घोड़ा संचालक गोविंद सिंह रावत कहते हैं कि प्रशासन की ओर से पंजीकरण बंद कर दिया गया था, जिस कारण हजारों घोड़ा-खच्चर बिना पंजीकरण के रह गए। ऐसे में घोड़ा-खच्चर के मरने पर उनका पोस्टमार्टम भी नहीं हो पा रहा।
इस लिए विभाग के पास मृत घोड़ा-खच्चर का आकड़ा उपलब्ध नहीं है। गौरीकुंड समेत यात्रा मार्ग पर घोड़ा-खच्चर की नियमित जांच हो रही है। पेट फूलने से फेफड़े सीधे प्रभावित होते हैं और सांस लेने में दिक्कत आती है। इसे देखते हुए पशुपालन विभाग की ओर से पर्याप्त मात्रा में दवाइयां उपलब्ध कराई जा रही हैं। पैदल मार्ग पर सभी घोड़ा-खच्चर की मौत पेट फूलने व सांस लेने में दिक्कत आने से हुई।
– डा. आशीष रावत, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी, रुद्रप्रयाग