प्रभु श्रीराम ने पिता श्राद्ध किया तब से नाम पड़ गया दशरथ घाट

के० एस० टी०,चित्रकूट संवाददाता। तपोभूमि में कई ऐसे स्थान हैं जहां भगवान राम के वनवास काल से साक्ष्य आज भी मौजूद हैं। देखा जाता है कि राम सीता व लक्ष्मण के चरण जहां-जहां पांव पड़े वहां पर पत्थर भी पिघल गए थे। उनके चरण चिह्न बन जाते थे। भगवान राम ने कुछ समय के लिए करका आश्रम में भी प्रवास किया था, यहां पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। तभी से इस स्थान को ‘दशरथ घाट’ कहते हैं। यहां के पत्थरों पर एक विशेष प्रकार के चरणचिह्न दिखाई पड़ते हैं।

कल कल बहते झरने ने रोक लिए थे राम के कदम-: विकास खंड मऊ की ग्राम पंचायत खंडेहा में हनुमानगंज के पास स्थित करका आश्रम जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर है। विंध्य पर्वत श्रृंखला में स्थित करका पहाड़ की प्राकृतिक गुफाओं, कल कल बहती जल धाराओं (झरना) लोगों को लुभाते हैं। चित्र कूट आते समय भगवान राम के कदम भी यहीं पर रुक गए थे। उनको यह स्थान इतना पसंद आया था कि सीता और लखन के साथ यहीं कुछ दिन ठहरे थे। करका पहाड़ी में आज भी वह गुफा है जिसमें राम और सीता ने निवास किया था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

यही पर मिली थी पिता के मृत्यु की खबर-: चित्रकूट में शोध करने वाले गायत्री शक्तिपीठ के डा रामनारायण त्रिपाठी बताते हैं कि पिता दशरथ की 14 वर्ष के वनवास की आज्ञा का पालन करने के लिए प्रभु श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या से निकले तो प्रयागराज भारद्वाज मुनि के आश्रम में होते हुए चित्रकूट की ओर चले। जब करका आश्रम में पहुंचे तो उनको पिता दशरथ के मृत्यु की खबर मिली। उन्होंने इसी स्थान पर विंध्य पर्वत से निकलने वाले झरने से पिता को श्रद्धांजलि अर्पित की और श्राद्ध किया। तभी से यह स्थान दशरथ घाट के नाम से प्रसिद्ध है।

यहां पर श्राद्ध करने से पितरों को मिलती है मुक्ति-: मऊ शिवपुर निवासी पं. नवल किशोर त्रिपाठी कहते हैं दशरथ घाट में श्राद्ध करने वाले के पितरों को मुक्ति मिलती है। साथ ही उनके मातृ और पितृ पक्ष के मृतकों की किसी कारण वश भटक रही आत्माएं भी मुक्त हो स्वर्ग में स्थान पाती हैं।

 

 

 

पर्यटन की दृष्टि से भी है महत्वपूर्ण दशरथ घाट-: इतिहास कार डा0 संग्राम सिंह कहते हैं कि दशरथ घाट पौराणिक व धार्मिक के साथ पर्यटन की दृष्टि से भी अधिक महत्वपूर्ण है। शिवलिंग पर जलाभिषेक करने वाला जल स्त्रोत भी यहां है, जिसका आज तक उद्गमस्थल नहीं मिला है। शेष शैय्या पर लेटे हुए भगवान विष्णु की मृूर्ति भी यहां है।

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