कोर्ट परिसर में कदम कदम पर खामियां!

बिना जांच के किसी के प्रवेश नहीं दिया जाए, जो नहीं दिखता

कोर्ट के आफिस में सीधे प्रवेश को रोका जाए, छूट बंद हो


के० एस० टी०,कानपुर नगर संवाददाता। न्यायालय परिसर के अंदर और बाहर सुरक्षा के इंतजाम होने के बाद भी वादी प्रतिवादी संग आये परिजन बेवजह के उत्पाद करने से बाज नहीं आते। इस तरह के दृश्य आये दिन सामने आते हैं। जो घटनाओं की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। दोनों पक्ष आमने सामने जब आते हैं तो मामला संवेदन शील हो जाता है। साथ आये अधिवक्ता को काफी मशक्कत करनी पड़ती है।

कोर्ट के आफिस में वैसे तो अधिवक्ता को छोड़कर किसी को प्रवेश की इजाजत नहीं होती लेकिन अधिवक्ता से ज्यादा वादी परिवादी देखे जा सकते हैं। फाइल देखने के लिए तैनात कर्मियों पर दवाब बनाते हैं। अगर देर हुई तो कर्मचारी तबके से लड़ने झगड़े की पटकथा को साकार करके न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करने से नहीं चूकते। कोर्ट के कार्यालय पर होने वाले हंगामे पर न्यायिक अफसर मौन रहते हैं।

सारा खेल सेटिंग के साथ कमाई का रहता है। जो सब जानते हैं लेकिन कार्रवाई से परहेज करते हैं। ऐसा ही एक प्रकरण बीती छह अक्टूबर को एडीजे-3 के आफिस में देखने को मिला जिसने सुरक्षा इन्तजाम की पोल खोलकर रख दी। बात इस कदर बढ गई कि पक्ष कार और परिजन आफिस कर्मचारी के साथ अभद्रता पर उतारू हो गए। अपने किए पर शर्मिन्दा होने बजाय कार्यालय मे रखे कम्प्यूटर व कागजातों को.

नुकसान पहुंचाकर खिसक लिए। कार्यालय परिसर में मचे हंगामे से अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे फरियादी वर्ग को नुकसान उठाना पड़ा। कार्यालय कुछ देर के लिए अखाड़ा बन गया। कर्मचारी अशोभनीय व्यवहार से इतना व्यथित हो गए कि होने वाली दिक्कतों व सुरक्षा को लेकर मुखिया के पास शिकायत करने पहुंच गए। दरअसल मामला गंभीर था। मामले का संज्ञान लेकर तत्काल जिला जज निरीक्षण करने पहुंच गए।

मामले को समझे बिना कार्यालय की व्यवस्था पर सवाल खड़े करके सभी को हिदायत तो दी लेकिन बिना पक्ष जाने कर्मचारी को दंडित करने के लिहाज उसे सेवामुक्त कर दिया। जिसने कर्मचारी वर्ग के असंतोष को हवा दे दी। कार्यालय बंद करके हडताल पर चले गए। हडताल लोगों को कहना है कि वैसे कार्यालय में किसी का प्रवेश प्रतिबंधित है। वकील को छोड़कर कोई नही आ जा सकता। देखा जाता है कि.

 

 

कार्यालय में वकीलों से जाती वादी प्रतिवादी नियमों का रोज मखौल उडाते हैं। इसके लिए सुरक्षा की मौजूदा खामियां है। रोज बड़ी संख्या में वादी प्रतिवादी आते हैं उनकी कोई जांच पड़ताल नहीं होती। व्यवस्था को धता बताकर दफनाते हुए कोर्ट या कार्यालय पहुंच जाते हैं। सुरक्षा में तैनात लोग इस तरफ ध्यान नहीं देते कि पेशी पर जेल से आने वालों में शातिर अपराधी आते हैं जो चूक से फरार हो सकते हैं।

इस पर ध्यान देने के बजाय उपद्रव करने वालों के बजाय कर्मचारी को दंडित करने का ऐसा तरीका न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता। इस घटना को जिलाजज को गंभीरता से लेकर ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि मेन गेट से लेकर कोर्ट तक पहुंचने वाले हर शख्स की सघन पड़ताल की जाए। दोषी को दंडित किया जाए ताकि सुरक्षा का माहौल और एहसास हर लोगों को हो सके। न्यायिक परिसर को अखाड़ा बनाने की किसी को इजाजत नहीं। समान व्यवहार से कोर्ट की गरिमा को ठेस न पहुंचे इसका ख्याल रखना जिलाजज की प्राथमिकता हो।

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