सस्ता कर्ज देकर जॉब बचा सकती थी सरकार

के. एस. टी, नई दिल्ली संवाददाता। कोरोना वायरस महामारी और ‘लाकडाउन’ के चलते बड़े पैमाने पर लोगों को नौकरी से निकाले जाने की रपटों के बीच देश के प्रमुख उद्योग मंडल भारतीय उद्योग परिसंघ (सी आई आई) का कहना है कि कम्पनियों को वेतन भुगतान के लिए सस्ते कर्ज की सुविधा दिलाकर कई क्षेत्रों में नौकरियां बचाई जा सकती थीं।

सी आई आई के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि उद्योग मंडल ने सरकार को कम्पनियों के लिए वेतन भुगतान बिल के बराबर 3 से 6 महीने के लिए सस्ती दर पर कर्ज सुलभ करने का सुझाव दिया था ताकि कम्पनियों वे अपने काम गारों को समय पर पारिश्रमिक का भुगतान कर सकें।

पर ऐसा हुआ नहीं। सी आई आई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने मौजूदा संकट में बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां जाने‚ सरकार के आर्थीक पैकेज समेत विभिन्न मुद्दों से जुड़े सवालों पर उद्योग मंडल के विचार रखे। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा‚ ‘यह सही है कि आर्थिक पैकेज के तहत जिन सुधारों की घोषणा की गई है।

उसमें से ज्यादातर का प्रभाव मध्यम से दीर्घावधि में पड़ेगा। हालांकि कुछ अल्पकालीन उपायों की भी घोषणा की गई है‚ जैसे छोटे उद्यमों के लिए कर्ज की गारंटी (3 लाख करोड़ रुपये का बिना किसी गारंटी के कर्ज सुलभ करना)। बनर्जी ने कहा‚ ‘इससे कोविड–19 संकट से सर्वाधिक प्रभावित एमएसएमई (सूक्ष्म‚ लघु एवं मझोले उद्यम) क्षेत्र को आसानी से कर्ज सुलभ होगा।

इससे निवेश बढ़ेगा‚ लोगों को रोजगार मिलेगा और मांग को गति मिलेगी। अंततः अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी। विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर लोगों को नौकरी से निकाले जाने से जुड़े एक सवाल के जवाब में सी आई आई के महानिदेशक ने कहा‚ ‘कोरोना वायरस संकट के दौरान लोगों की नौकरियां और आजीविका बचाये रखने के लिए कदम उठाये जाने चाहिए थे और इसकी जरूरत है।

सी आई आई ने सरकार को वेतन समर्थन कार्यक्रम का सुझाव दिया था जिसके तहत कम्पनियों को 3 से 6 महीने के लिए सस्ती दर पर कर्ज लेने की सुविधा मिलती ताकि वे अपने काम गारों को समय पर वेतन का भुगतान कर सके पर ऐसा हुआ नहीं है। अगर ऐसा होता तो संभवतः नौकरियां कुछ हद तक सुरक्षित रहती।

हाल के दिनों में बेरोजगारी दर में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है और सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार तीन मई को समाप्त सप्ताह के दौरान यह बढ़कर 27.11 प्रतिशत हो गई।

रिपोर्ट के मुताबिक नियमित वेतन पाने वालों की संख्या में भी अप्रत्याशित कमी आई है। 2019-20 में जहां उनकी संख्या 8.6 करोड़ थी तो अप्रैल 2020 में वह घट कर 6.8 करोड़ रह गई।

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