Skip to contentके० एस० टी०,कानपुर संवाददाता। अब कम पानी में गेहूं और जौ की फसलें हो सकेंगी और अच्छी पैदावार भी देंगी। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के वैज्ञानिकों ने असिंचित दशा के लिए गेहूं, जौ, सरसों, मसूर और तंबाकू की नई प्रजातियां विकसित की हैं।
लखनऊ कृषि भवन में हुई राज्य बीज विमोचन समिति की बैठक में सीएसए की छह प्रजातियों को हरी झंडी दिखा दी गई। प्रजातियां विकसित करने में डॉ. एचजी प्रकाश, डॉ. सोमवीर सिंह, डॉ. पीके गुप्ता, डॉ. पीएन अवस्थी, डॉ. एलपी तिवारी, डॉ. वाईपी सिंह की भूमिका रही है।
कुलपति डॉ. डीआर सिंह ने प्रजातियों को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों को बधाई दी है। इन प्रजातियों का प्रदेश के 10 कृषि संस्थानों और कृषि केंद्रों में परीक्षण हो चुका है।
एक सिंचाई में एक हेक्टेयर में 30 क्विंटल पैदावार
सीएसए के डॉ. सोमवीर सिंह ने गेहूं की के-1616 प्रजाति को विकसित किया है। बताया कि यह पूरी तरह से रोग प्रतिरोधक है। इसमें कीटों के हमले का प्रभाव कम पड़ता है। एक बार हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। 120 से 125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है और एक हेक्टेयर जमीन में 30 क्विंटल पैदावार देती है।
ऊसर और असिंचित दशा के लिए जौ
सीएसए की जौ की नई प्रजातियों केवी 1425 और केवी 1506 को लांच किया गया है। बीज जनक डॉ. पीके गुप्ता ने बताया कि सीएसए जौ की 32 प्रजातियां विकसित कर चुका है। केवी 1506 असिंचित दशा के लिए विकसित की गई है।
यह 125 दिन में 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है। केवी 1425 ऊसर भूमि के लिए विकसित की गई है। यह एक हेक्टेयर में 33 क्विंटल पैदावार देती है। यह दोनों प्रजातियां रोग अवरोधी हैं।
ज्यादा तापमान वाले क्षेत्रों के लिए सरसों
सीएसए के बीज जनक डॉ. महक सिंह ने सरसों की सुरेखा केएमआर 16-2 प्रजाति को विकसित किया है। इसके पौधों पर तापमान ज्यादा होने का प्रभाव नहीं पड़ता है। डॉ. सिंह ने बताया यह 128 से 130 दिन में तैयार होती है और औसत 25 क्विंटल उत्पादन देती है। यह रोग अवरोधी है। इसके दाने का आकार बड़ा है। इसमें तेल का प्रतिशत 42.6 प्रतिशत है।