अपराधियों के साथ अनवरगंज पुलिस की साठगांठ

के० एस० टी०,कानपुर संवाददाता। कानपुर शहर हो या कोई भी शहर हो, अपराधियों के साथ खाकी की साठगांठ नई नहीं है। शहर के अधिकांश थानों में मुखबिर के रूप में अपराधियों की खासी पैठ है। यह अपराधी थाने के हर छोटे बड़े मामले में न केवल हस्तक्षेप करते हैं,

बल्कि कई बार तो पंच परमेश्वर की भूमिका में होते हैं। दैनिक जागरण ने शहर के कुछ ऐसे ही अपराधियों की कुंडली तैयारी की है, जिनका पुलिस से गहरा याराना रहा है। पहली कड़ी में अनवरगंज के एक ऐसे ही अपराधी के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं,

जिसने पशु तस्करी से अपना सफर शुरू किया और अब भाड़े पर हत्याएं कराने के लिए शूटर उपलब्ध कराने का काम करता है। बावजूद इसके अनवरगंज थाने में इस अपराधी की अच्छी पैठ है।

थाना प्रभारी ने छिपाया था अपराधी का आपराधिक इतिहास

अनवरगंज पुलिस इस अपराधी के हाथों में कैसे खेलती है, इसका उदाहरण साढ़े चार महीने पहले उस समय देखने को मिला था जब तत्कालीन थानेदार ने एडीजी से इस अपराधी का क्राइम रिकॉर्ड छिपा लिया था। हुआ यह था कि इस अपराधी को लेकर शिकायत की गई थी कि वह पशु तस्करी करता है।

सूचना पर एडीजी जय नारायण सिंह ने एसएसपी से इसकी क्राइम हिस्ट्री मांगी थी। अनवरगंज के तत्कालीन थाना प्रभारी ने एसएसपी को दी गई रिपोर्ट में अपराधी को किसान बताते हुए कहा था कि इसके खिलाफ 2009 में पशु क्रूरता अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था,

मगर अब वह शांतिपूर्वक जीवन यापन कर रहा है। शिकायतकर्ता ने जब एडीजी को इसे लेकर साक्ष्य दिया तो जांच कराई गई। जांच में सामने आया कि इंस्पेक्टर ने गलत जानकारी दी थी। असल में आरोपित के खिलाफ एक दो नहीं बल्कि 50 से अधिक मुकदमे दर्ज हैं।

2009 के बाद भी उसके खिलाफ मुकदमे दर्ज हुए, जिसे छिपा लिया गया। इस घटना के सामने आने के बाद थाना प्रभारी को तत्कालीन एसएसपी दिनेश कुमार पी ने निलंबित कर दिया था।

अपराध की लंबी फेहरिस्त

अनवरगंज थाने के इस गैंगस्टर की लंबी हिस्ट्रीशीट है। 1996 में इसके खिलाफ बलवा और हत्या की धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ। इसके अगले साल आम्र्स एक्ट के तीन मुकदमे अनवरगंज और बेकनगंज थाने में दर्ज हुए। इसके बाद पुलिस ने 110 जी यानी मिनी गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई की।

वर्ष 2020 में बेकनगंज से इसके खिलाफ गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई की गई। 2003 में इसने बेकनगंज में भी एक हत्या को अंजाम दिया। वर्ष 2007 में इसके खिलाफ उन्नाव के मौरावां थानाक्षेत्र में हत्या की धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ।

हत्या के प्रयास के दो मुकदमों के अलावा इसके खिलाफ गोवध अधिनियम व पशु क्रूरता के तहत भी दस मुकदमे कायम हैं। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि बसपा नेता पिंटू सेंगर हत्याकांड की पटकथा भी इसी ने रची,

लेकिन जोड़ जुगाड़ से बच निकला। करीब तीन साल पहले यह अपनी प्रेमिका को गोली मारने के जुर्म में यह जेल भी जा चुका है।

आज भी थाने में खासी पैठ

इस घटना के बाद भी इस अपराधी की थाने से पैठ कमजोर नहीं हुई है। थाने के टॉप टेन में इसका नाम नहीं है। इतने बड़े प्रकरण के बाद भी इसके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई पुलिस की ओर से नहीं की गई।

आज भी थाना क्षेत्र के तमाम विवादों में इसका दखल होता है। अपने अवैध कारोबार में पुलिस का दखल न हो इसके लिए वह साप्ताहिक नजराना भी देता है।

हालांकि क्राइम हिस्ट्री छिपाने के बाद यह आला अधिकारियों की नजरों में चढ़ चुका है, इसलिए फिलहाल पर्दे के पीछे रहकर ही पुलिस की रहनुमाई में लगा रहता है।

इनका ये है कहना

मेरी जानकारी में यह मामला नहीं है। अगर ऐसा है तो जांच कराकर कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ ही यह भी देखा जाएगा कि कौन पुलिस वाले हैं, जो इसकी मदद कर रहे हैं। उनके खिलाफ भी विभागीय कार्रवाई की जाएगी।

डॉ. प्रीतिंदर सिंह, डीआइजी

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