के० एस० टी०,कानपुर देहात संवाददाता।कहने को तो भले ही जिले की सूरत और सीरत रही हो, लेकिन यह बातें बीहड़ पट्टी के लोगों के सामने कहना बेईमानी साबित होगी। जिले की सीमा यमुना किनारे बसे लोगों को चाहे गर्मी हो चाहे सर्दी और फिर चाहे हो बरसात हर मौसम उनके लिए चुनौतियों से भरा ही रहता है। पेयजल, सिचाई और आवागमन के लिए सुगम रोड न होने के कारण जरूरतों को पूरा करने के लिए इन्हें हर समय जूझना ही पड़ता है। योजनाएं आईं,
लेकिन अधिकारी यहां क्षेत्र में उसे धरातल पर नहीं ला पाए। भोगनीपुर व सिकंदरा विधान सभा क्षेत्र के बीहड़ पट्टी यमुना किनारे बसे गांवों के लोगों तक शासन की मूलभूत सुविधाएं आवश्यकतानुसार नहीं पहुंच सकी हैं। जिसके चलते खरका, जरी, किशनपुर, गुबार, पिचौरा, कमलपुर, भाल, इंद्रपुरा, जैसलपुर, देवराहट, गौरी आदि गांवों के लोग विकास की आस लगाए हैं। काम हुआ पर जिस तरह से उम्मीद थी वह नहीं हो सका। किशनपुर के मजरा जरी गांव के रमाशंकर,
राजू ने बताया कि उनके क्षेत्र की जमीन ऊबड़-खाबड़ होने के सिचाई के लिए पानी की जरूरत जल्दी-जल्दी पड़ती है। सरकारी व निजी सिचाई के साधन नहीं होने के कारण किसानों को मेहनत के मुताबिक लाभ नहीं मिल पा रहा है किसी तरह संघर्ष करते हुए परिवार का भरण पोषण भर कर पा रहे हैं। व्यक्तिगत तौर पर ट्यूबवेल स्थापित कराने में इतना खर्च आता है कि उसका भार उठा पाना यहां के निवासियों के लिए संभव नहीं है।
वहीं गांव में सरकारी हैंडपंप न के बराबर लगे होने के कारण पेयजल संकट कायम रहता है। पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए आज भी गहरे कुओं का सहारा लेना पड़ रहा है। एक बाल्टी पानी निकालने में शरीर सर्दी में भी पसीना छोड़ देता है। वहीं गर्मी का मौसम आने पर कुंओं के धोखा देने पर यमुना नदी से पानी भरकर लाना पड़ता है। सड़क न होने से ऊंची, नीची पगडंडियों से होकर रास्ता जाने से महिलाएं, बच्चे सिर से पानी ढोने के लिए प्रतिदिन संघर्ष करते हैं।
उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए कोई आगे नहीं आता। इसी तरह से भाल गांव के प्यारे लाल, पुष्पेंद्र, हरपाल सिंह और कथरी गांव के राजकुमार, विपिन चंद्र, राम भरोसे ने बताया कि दोनों गांवों को जोड़ने वाली सड़क बेहद खस्ताहाल होने से आने-जाने में दिक्कत होती है। संपर्क मार्ग कच्चे व जर्जर हैं। सीधे करीब छह किलोमीटर पड़ता है जबकि घूमकर जाने में करीब 15 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है जिससे समय और वाहनों में ईंधन अधिक खर्च होता है।
यही हालत कमलपुर से कथरी, इंद्रपुरा से जैसलपुर, पिचौरा के मार्ग की है। वहीं पुरैनी से सुजौर खस्ताहाल पांच किलोमीटर मार्ग न बनने से यहां के कान्हाखेड़ा, पनियांमऊ, बील्हापुर, प्रेमपुर, सुल्तनापुर, गौरी, नोनापुर गांवों के लोगों को सीधा रास्ता होने के बजाए 20 किलोमीटर का चक्कर काटकर कालपी बाजार पहुंचना पड़ता है। यहां के राम प्रकाश, सूरज सिंह, रविद्र, राकेश आदि ने बताया कि कालपी शहर भले ही जालौन जिला में पड़ता है, लेकिन उनकी सुविधा को.
देखते हुए बेहतर है यहां से उनकी लगभग सारी जरूरतें पूरी हो जाती हैं। पांच किलोमीटर खस्ताहाल मार्ग का निर्माण होना बेहद जरूरी है।