चीन को आर्थिक चोट जरुरी

टिकटॉक समेत 59 चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाने के साथ सरकारी विभागों और मंत्रालयों को चीनी सामान की खरीदारी से दूर रहने का अनौपचारिक निर्देश देकर सरकार चीन को आर्थिक टक्कर देने की डगर पर आगे बढ़ी है। अब देश में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को अधिकतम प्रोत्साहन देने और विशेष आर्थिक क्षेत्र यानी स्पेशल इकोनॉमिक जोन (सेज) को प्रभावी बनाकर निर्यात में वृद्धि किए जाने का बड़ा रणनीतिक कदम भी उठाया जाना जरूरी है।

चीन से निकलती वैश्विक निर्यातक कंपनियों को भारत की ओर आकर्षित करने के लिए सेज का अधिकतम उपयोग करना होगा। साथ ही, तटीय आर्थिक क्षेत्र (सीईजेड) की नई स्थापना को मूर्त रूप देना  होगा। भारत के अब तक निर्यात मोर्चे पर पीछे रहने का एक बड़ा कारण सेज का अपने मकसद में कामयाब न होना भी है। देश में वर्ष 2000 से शुरू हुई सेज का मकसद निर्यात आधारित इकाइयों को विशेष प्रोत्साहन देना, रोजगार के अवसर बढ़ाना और घरेलू और विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना है।

मार्च के अंत तक देश में 238 सेज के तहत 5,000 से अधिक औद्योगिक इकाइयां हैं, जिनमें 21 लाख से अधिक लोग काम कर रहे हैं। सेज में करीब 5.37 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। पिछले वित्त वर्ष में सेज इकाइयों से करीब 7.85 लाख करोड़ रुपये का निर्यात किया गया था। हालांकि सेज से संबंधित एसोचैम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में जितने सेज हैं, उनमें आधे से अधिक बेकार पड़े हैं और निर्यात बढ़ाने में ये अधिक उपयोगिता साबित नहीं कर पाए हैं।

यदि हम पिछले पांच साल के बजट प्रावधानों को देखें, तो पाते हैं कि सेज के लिए अनुकूल प्रावधान न होने से निर्यात वृद्धि के इनके लक्ष्य पूरे नहीं हो सके। जबकि सेज के अच्छे प्रस्तुतीकरण से भारत के लिए तैयार उत्पादों का नए हब बनने और निर्यात बढ़ाने की संभावनाओं को साकार किया जा सकता हैं। ब्लूमबर्ग की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना के कारण चीन के प्रति नाराजगी से वहां स्थित कई वैश्विक निर्यातक कंपनियां मैन्यूफैक्चरिंग का अपना काम पूरी तरह या आंशिक रूप से स्थानांतरित करने की तैयारी कर रही हैं।

रिपोर्ट बताती है कि चीन स्थित जापान, अमेरिका, दक्षिण कोरिया व ब्रिटेन की कई कंपनियों को भारत अपने यहां बुलाने को प्राथमिकता दे रहा है। इस समय दवाओं सहित कृषि, प्रोसेस्ड फूड, गारमेंट, जेम्स व ज्वैलरी, लेदर एवं लेदर प्रोडक्ट, कालीन और इंजीनियरिंग उत्पाद जैसी वस्तुओं के निर्यात के लिए सरकार के रणनीतिक प्रयत्न लाभप्रद होंगे। भारतीय फार्मा उद्योग पूरी दुनिया में अहमियत रखता है। भारत अकेला ऐसा देश है, जिसके पास यूएसएफडीए के मानकों के अनुरूप अमेरिका से बाहर सबसे अधिक संख्या में दवा बनाने के प्लांट हैं।

भारत में आईफोन मैन्यूफैक्चरिंग और इसके निर्यात क्षेत्र में आगे बढ़ने की संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं। कई रिपोर्टों में पाया गया है कि सेज के उत्पादन को किसी नजदीकी बंदरगाह तक ले जाने में लॉजिस्टिक और कनेक्टिविटी की बड़ी समस्या आती है। ऐसे में यदि देश के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर दो-दो, तीन-तीन सीईजेड को उपयुक्त बुनियादी ढांचे के साथ विकसित किया जाए, तो इससे समस्या काफी सीमा तक दूर हो सकती है।

इससे कारोबार और निर्यात बढ़ाने, अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त करने तथा रोजगार के अवसर बढ़ाने में भी मदद मिल सकती है। उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार सेज को उपयोगी बनाने, आधे से ज्यादा बेकार पड़े सेज को सक्रिय करने तथा सीईजेड की शीघ्रतापूर्वक नई स्थापनाओं की डगर पर आगे बढ़ेगी।

यह भी उम्मीद करनी चाहिए कि कोविड-19 के बीच सरकार द्वारा वैश्विक निर्यातक कंपनियों के लिए उत्पादकता संबद्ध प्रोत्साहन योजना (पीएलआई), इलेक्ट्रॉनिक्स कल-पुर्जों एवं सेमी कंडक्टर्स के लिए प्रोत्साहन योजना (एसपीईसीएस), संशोधित इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण संकुल योजना तथा प्लग ऐंड प्ले मॉडल के तहत दिए जा रहे।

विशेष प्रोत्साहनों से चीन से बाहर निकलती हुई वैश्विक निर्यातक कंपनियां भारत की ओर आकर्षित हो सकेंगी। इससे निश्चित रूप से भारत आर्थिक रूप से मजबूत हो सकेगा और आर्थिक मोर्चे पर चीन से मुकाबले की स्थिति में भी होगा।

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