लावारिस खड़ी गाड़ियों के मामले में पुलिस बनी रहती है लापरवाह

 ◆ मौका मिलते ही कब कट जाते हैं चोरी के वाहन पता ही नहीं चलता

 ◆ एक समय नम्बर एक की गाड़ी कटने पर एक वर्दीधारी को मिलता था साढ़े चार हजार रुपइया

 ◆ करीबियों पर ही विश्वास के सहारे पुलिस का सारा दारोमदार


के० एस० टी०,कानपुर नगर। फजलगंज थाना क्षेत्र के जरायम का बड़ा गढ़ बन चुका है। जिसमें तरह-तरह के अपराध पनपते रहते हैं। हालांकि मोटर जोन होने से नशेबाजी तो आम बात है। किन्तु यहां पर चोरियों की गाड़ी कटने की शिकायत आज ही से नही बल्कि एक समय से है। कटी गाड़ियों के कल-पुर्जे किन दुकानों और कहां-कहां उपलब्ध रहते हैं?

जिनके विषय में जानकार भली-भांति जानते हैं। जो दूर-दराज से आने वाले कस्टमरों को परते की चीज दिलाने के नाम पर इन दुकानों में ले जाते हैं। जानकार सूत्र बताते हैं कि फजलगंज से तबादले में दूसरे थाने में तैनाती पर गये एक वर्दीधारी को नम्बर एक के ट्रक की कटाई में साढे चार हजार रुपया दिया जाता था। जबकि नम्बर दो (चोरी) के वाहनों की कटाई में कितना मिल जाता होगा। इसका कोई तय नहीं होता है।

हालांकि थाने-पुलिस को वर्तमान समय में पैसा मिलता हो या न मिलता हो किन्तु सड़कों में लावारिस खड़े वाहनों के मामले में थाना, चौकी की पुलिस लापरवाह वही रहती है। जिससे उसे सटीक जानकारी नहीं मिल पाती है। जहां तक वर्तमान थाना प्रभारी की बात है तो वह कोरोना संक्रमण से इतने अधिक दहशतजंदा है कि वातानुकूलित कमरे में ज्यादातर अकेले ही मोबाइल में उलझे रहते हैं।

फरियादी आया तो उसकी फरियाद सुन ली और न्यायोचित कार्यवाही कर उसे संतुष्ट कर दिया। बस फिर उसी मोबाइल में उलझ गये। जहां तक चोरी के वाहनों के कटने की बात है तो वह अपने मुखबिर तंत्र पर ही सारी जिम्मेदारी डाल रखे हैं। जिन पर उन्हें अपने से अधिक विश्वास है। बाकी चौकी प्रभारियों के साथ-साथ वे अपने चालक वर्दी धारियों के भरोसे थाना चला रहे हैं।

खास सूत्र बताते हैं कि बैंक ऑफ बड़ौदा से गड़रियन पुरवा जाने वाला मार्ग हो या फिर फजलगंज से विजय नगर तक या गड़रियन पुरवा में वर्दी धारियों के विश्वासपात्र दुकानदार ट्रांसपोर्टर या मिस्त्री हो उनकी दुकानों के सामने भली ही महीनों से लावारिस ट्रक या अन्य वाहन कोई भी खड़ा कर जाए पुलिस उसकी तरफ देखती ही नहीं.

क्योंकि उनकी नजर में उनका विश्वासपात्र दुकानदार उन्हें धोखा दे ही नहीं सकता। जिसका फायदा पुलिस के ही करीबियों के माध्यम से चोरी के वाहन काटने वाले अपने कार्य को बखूबी पूर्वक अंजाम दे ही देते हैं। और पुलिस को इसकी भनक ही नहीं लगती बाद में वही चीजें सुर्खियां बनती है तो तरह-तरह की टालमटोल कर उच्चाधिकारियों को संतुष्ट कर लिया जाता है।

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