नोट बंदी, जी० एस० टी उसके बाद कोरोना लॉक डाउन के बाद निजी व्यवसायिक कल कारखानों बाजारों में हुई छटनी के बाद शहर में बेरोजगारी का ग्राफ अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया है। ऐसा नहीं है इन स्थितियों में बेरोजगार रोजाना नौकरी की तलाश में भूखे पेट घरों से न निकल रहे हो किन्तु बाजारों फैक्ट्रियों में ( नो बैकेसी ) के ही बोर्ड से वे बैरंग वापस लौट आते है।
वर्तमान समय में अगर शहर के प्रतिष्ठानों में कोई कार्य है तो वह लेबर के लिए किन्तु लेबर में भी बिहारी बाबू को ही वरीयता मिलती हैं क्योंकि बिहारी होते ही मेहनतकश की गारंटी तय हो जाती है। बताते चलें कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए जाजमऊ की ट्रेनरियो में कोरोना काल से ही बंदी की मार चल रही है। जिसमें बड़ी बेरोजगारी बढ़ी है।
इधर पनकी, दादा नगर, जैनपुर, रनिया आदि की फैक्ट्रियों में कुछ भलाई हो रही थी। किन्तु कोरोना काल के बाद खुली फैक्ट्रियों में आधे के करीब छटनियां पहले ही हो चुकी थी। आज फैक्ट्री संचालक सीमित स्टाफ से ही सारा कार्य खींच रहे हैं। क्योंकि आज जो भी कार्य कर रहे हैं वह गरजमंद है। वे जानते हैं कि नौकरी छूटने पर शहर में काम नहीं है।
लिहाजा वह फैक्ट्री प्रबंधक के मुताबिक ही कार्य कर रहे हैं। प्रमुख बाजारों नवीन मार्केट, सीसामऊ, गोविन्द नगर, विद्यार्थी मार्केट, हीरागंज, फर्नीचर मार्केट, नया गंज, बिरहाना रोड, हटिया, कपड़ा बाजार, मनीराम बगिया आदि में पहले ही छटनी है। ऐसी सूरत में शहर में बेरोजगारी का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। जिसमें हालत जटिल होती जा रही है।