नई दिल्ली, संवाददाता। कोरोना हर उम्र के लोगों के लिए खतरनाक है। वैज्ञानिक और चिकित्सक मानते हैं कि इसकी चपेट में आने का एक बड़ा कारण व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युन सिस्टम) का कमजोर होना है। ब्रिटेन की डॉ. सारा जार्विस बताती हैं कि किसी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है और वे व्यक्ति वायरस की चपेट में आता है तो वायरस फेफड़े के भीतर घुसकर अपना कुनबा बढ़ाता है। वायरस की संख्या बढ़ने पर फेफड़ों में सूजन आने के साथ उसकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है। वायरस जब शरीर में प्रवेश करता है तो इम्युन सिस्टम उससे लड़ता है। इसी प्रक्रिया में फेफड़ों की स्वस्थ कोशिकाएं खराब हो जाती है। इससे निमोनिया और सांस संबंधी तकलीफ हो जाती है और वायरस तेजी से हावी होता है।
गले में रुक जाए तो नुकसान होता है कम
वायरस शरीर में कितना भीतर गया इससे भी नुकसान की आशंका बढ़ती है। वायरस नाक और मुंह से भीतर जाता है। गले तक ही रूक जाए तो ऐसे व्यक्ति कुछ दिन के भीतर ठीक हो जाते हैं। सूखी खांसी और बुखार की तकलीफ घर पर ठीक हो जाती है।
…तो बढ़ती है तकलीफ
वायरस जब श्वास नलिका से होते हुए सांस लेने में मदद करने वाले अंगों और फेफड़ों की कोशिकाओं में पहुंचता है तो स्थिति खराब होती है। इसमें व्यक्ति को सीने में दर्द, कफ और सांस लेने में तकलीफ होती है क्योंकि वायरस के कारण सांस लेने में इस्तेमाल होने वाले सभी अंगों में सूजन आ जाती है।
खून में ऑक्सीजन की कमी, मल्टी ऑर्गन फेल्योर
वायरस एल्वियोली (फेफड़ा या फुप्फुस) को भी प्रभावित करता है जिसका काम खून में ऑक्सीजन पहुंचाना होता है। इसके अलावा कार्बन-डाईऑक्साइड को निकालना होता है। एल्वियोली में सूजन आती है और इसमें पानी या पस भर जाता है जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है। रक्त में ऑक्सीजन भी कम मात्रा में पहुंचती है। इस कारण हालात मल्टी ऑर्गन फेल्योर के हो जाते हैं।
संक्रमण के तुरंत बाद नुकसान ठीक करता है शरीर
अमेरिका के संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. जेफरी टॉबेनबर्गर बताते हैं कि फेफड़ों को जब नुकसान पहुंचता है शरीर तुरंत उसकी मरम्मत की कोशिश में लग जाता है। अगर ये प्रक्रिया सफल हो जाती है तो संक्रमण कुछ दिन में ठीक हो सकता है। कुछ मामलों में इम्युन सिस्टम गलती भी कर जाता है जिससे वायरस फेफड़ों के भीतर पहुंच स्वस्थ कोशिका को नुकसान पहुंचा सकता है।