मीडि़या का सच बनाम सरकारी सच

देखिए राजनीति का जादू कि जो हमने देखा‚ सुना‚ ऑक्सीजन की कमी जो एक महीने तक दिल्ली समेत कई शहरों को हिलाती रही‚ लोग हांफते–हांफते दम तोड़ते रहे–वह सब मिथ्या था‚ झूूठ था‚ माया थी। सच सिर्फ संसद में था। कागज पर था। पॉलिटिकली करेक्ट था क्योंकि वह सच के बाद‚ बाद का बनाया गया ‘उत्तर सत्य’ था


ब लगता है कि टीवी एक झूठा माध्यम है। वह शुद्ध झूठी खबर बनाता है‚ झूठी ही दिखाता है। ‘सच’ सिर्फ संसद में होता है जो कागज पर लिखा होता है जिसे पढ़ा जाता है और जो रिकॉर्ड में चला जाता है। टीवी की खबरों को सच मानने का हमारा भरम तब टूटा जब एक दिन मंत्री जी ने बताया कि कोई कोविड मरीज ऑक्सीजन से कोई नहीं मरा। ऐसे में हमारे जैसे लोग क्या करें जो खबर चैनलों के लाइव कवरेजों को सच मानते हैं क्योंंकि वे दावा करते हैं कि वे जो दिखाते हैं‚ सच दिखाते हैं।

अब हमें कहना चाहिए कि खबर चैनल सच की जगह झूठ दिखाया करते हैं। अब हमें मान लेना चाहिए कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान हमने खबर चैनलों के लाइव कवरेजों में जिनको अस्पतालों के सामने ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ते देखा वो सब झूठ था। बत्रा अस्पताल के डाक्टर ने जब बताया कि ऑक्सीजन की कमी से इतने मरे‚ या गंगा राम में इतने मरे या वहां इतने मरे‚ सब बकवास था। देश के दुश्मनों का काम था यानी कि ऑक्सीजन की कमी के.

कारण दम तोड़ते मरीजों को उनके परिवारी जनों का मुंह से ऑक्सीजन देने की कोशिश करना किसी सीरियल के ‘इमोशनल सीन’ की तरह था और उनके आंसू उनका बिलखना एक बढ़िया ‘मेलोड्रामा’ भर था। इतना ही नहीं‚ राज्य सरकारों द्वारा ऑक्सीजन की कमी पूरी करने के लिए केंद्र सरकार से आए दिन गुहार करना‚ ऑक्सीजन के सिलेंडरों को अपने कंधों पर ढोने वाले लोगों का कहना कि हमको कहा जा रहा है कि कहीं से ऑक्सीजन भरवा कर लाओ तब मरीज बचेगा और.

ऑक्सीजन के लंगरों का चलना ऑक्सीजन की कालाबाजारी की खबरें‚ ऑक्सीजन की स्पेशल ट्रेेनें और टैंकरों का आना जाना सब झूठ था क्योंकि ऑक्सीजन की कमी थी ही नहीं‚ इसलिए जो मरे वे उसके अभाव में नहीं मरे! तब कैसे मरे? अरे भाई! जिदंगी और मौत सब ऊपर वाले के हाथ में है। हम तो निमित्त मात्र हैं। जिसकी आ गई है‚ उसे कोई बचा नहीं सकता और जिसकी नहीं आई है‚ उसे कोई मार नहीं सकता। एक ‘सच’ पर दूसरा ‘सच’ इसी तरह हावी किया जाता है।

आप इसे ‘आल्ट ट्रुथ’ कहें कि ‘पोस्ट ट्रुथ’ कहें या ‘हॉफ ट्रुथ’ कहें जो चाहें कहें लेकिन सच यही है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा! एक दिन फिर कोई कहेगा कोरोना महामारी भी नहीं थी और हमारा हेल्थ सिस्टम परफेक्ट था जो किसी को ऑक्सीजन के अभाव में मरने नहीं देता था। हाय! पहली बार मालूम हुआ कि जिस मीडिया पर आकर दलों के प्रवक्ता अपने कूड़ा विचारों की लदनी हम पर लादते हैं‚ वे ही सच के ठेकेदार हैं। बाकी सब खरीदार हैं।

वे अपना–अपना सच बेचते हैं। इस मामले में सिर्फ एक चैनल पर एक डाक्टर ने सरकारी सच का सच बताया कि मेडिकल की भाषा में मरीज की मौत का कारण ‘पोस्ट मार्टम’ के बाद ही बताया जाता है। और‚ कोविड से मरने वालों का ‘पोस्टमार्टम’ इस डर से नहीं किया जाता था कि कहीं ‘कोरोना योद्धाओं’ को कोरोना न लग जाए। इसलिए कारण बताना संभव नहीं। फिर मेडिकल वालों के निर्देश अलग कि मृतक की मौत का कारण मेडिकल भाषा में ही बताया जा सकता है.

जैसे कि ¾दयगति रुकने से मरना‚ ब्रेन की नस फटने से मरना‚ फेफड़़ों में इनफेक्शन होने से मरना आदि! इसलिए अगर कोई ऑक्सीजन की कमी से मरा भी हो तो कैसे कहें कि मरा। मेडिकल साइंस इसकी इजाजत नहीं देती। इसीलिए केंद्र ने राज्यों से कहा कि मरने वालों का डाटा दो। उनने दे दिया। केंद्र सरकार ने इकट्ठा कर दिया और जनहित में देश को बता दिया। इस पर काहे की रार। आप कहेंगे कि केंद्र पूछ सकता था कि लोग किस ‘कारण’ से मरे? लेकिन केंद्र क्यों पूछता?

न केंद्र ने पूछा‚ न आज्ञाकरी राज्य सरकारों ने कारण बताया और इस तरह दोनों बच गए। मरने वाले मर चुके। रोने वाले रो चुके। देखने वाले लाइव देख चुके। लेकिन देखिए राजनीति का जादू कि जो हमने देखा‚ सुना‚ ऑक्सीजन की कमी जो एक महीने तक दिल्ली समेत कई शहरों को हिलाती रही‚ लोग हांफते–हांफते दम तोड़ते रहे–वह सब मिथ्या था‚ झूूठ था‚ माया थी। सच सिर्फ संसद में था। कागज पर था। पॉलिटिकली करेक्ट था क्योंकि वह सच के बाद‚ बाद का बनाया गया ‘उत्तर सत्य’ था और है।

अब तक हम सुनते ही थे कि ‘उत्तर सत्य’ यह होता है‚ वो होता है‚ अब उसे बनते–बनाते देख भी लिया और बनाने वालों को भी देख लिया। इसलिए हे मीडिया और हे जनता! तुम सब झूठ हो। सच है तो सिर्फ राजनीति है‚ सरकारें हैं। वो चाहे केंद्र की सरकार हो या राज्यों की।

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