राम राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने बताया है कि बीमारियां भी हमारे कर्मों के परिणाम स्वरूप मिलती हैं। भारतीय दर्शन में ही नहीं, पाश्चात्य मान्यताएं भी कुछ इसी प्रकार की हैं।आदिवासियों में हर बीमारी का इलाज जडी बूटी और देवता की पूजा से हो जाता है। विश्वास सबसे बड़ी दवा होती है। पहले प्लेग जैसी महामारियों ने गांव और शहरों को उजाड़ दिया था। आज की पीढ़ी उस समय की कहानियां पढती और सुनती है।चिकित्सा विज्ञान ने तब इतनी तरक्की नहीं की थी लेकिन आज जिस तरह कोरोना वायरस के सामने परमाणु बमों का जखीरा रखने वाले भी सहमकर खडे हैं, वैसे ही तब भी लोग डरे सहमे जीवन बचाने का प्रयास कर रहे होंगे। आज की तरह उस समय भी आशंकाओं के साथ उम्मीदें रही होंगी। आशंका इस बात की होगी कि पता नहीं कब किसका साथ हमेशा हमेशा के लिए छूट जाए और उम्मीद इस बात की कि हर रात के बाद सवेरा होता है। इसी का नाम जिंदगी है। कोरोना से जंग हम भारतवासी बहुत बहादुरी से लड़े हैं, इसी का नतीजा है कि गत 22 अप्रैल को देशभर में कोरोना संक्रमण से प्रभावित 705 लोग स्वस्थ हुए हैं। इसके अलावा लाकडाउन के चलते पर्यावरण में बड़े पैमाने पर सुधार हुआ है। आशंकाओं ने भी घेर रखा है। संक्रमण रोकने का प्रयास किया जाता है तो कुछ लोग उसमें बाधा डालते हैं। चीन से मंगायी गयीं कोरोना टेस्ट की किट सही रिपोर्ट नहीं दे रही हैं और आर्थिक विकास लगभग ठहर गया है। सबसे चिंतित करने वाली बात यह है कि कुछ लोग अफवाह फैला कर साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की कुचेष्टा कर रहे हैं। महाराष्ट्र के पालघर मामले को एक उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है। इसे भी साम्प्रदायिक रूप देने की कोशिश की गयी थी लेकिन महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने ही सफाई दी कि मावलिंचिंग करने वाले और उसका शिकार हुए लोग अलग अलग सम्प्रदाय के नहीं थे। भारत में कोरोना का कहर उतना नहीं बरपा जितना अमेरिका, इंगलैण्ड और दूसरे तमाम विकसित देशों को झेलना पड़ा है। इसमें लाकडाउन की प्रभावी भूमिका रही। इस बात का पता तो सभी को है कि कोरोना की कोई सटीक दवा नहीं है। मलेरिया की पुरानी दवा और प्लाज्मा देकर जीवन प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाई गयी है। कोरोना का वायरस नए किस्म का है. इसलिए वायरस को मारने वाला दूसरा कोई भी टीका इस पर बेअसर है। उम्मीद की बात यह है कि दुनिया के कई शहरों और लैब में वैक्सीन के लिए लगातार रिसर्च हो रही है। विश्व प्रसिद्ध वैक्सीनोंलाजिस्ट और जेनर इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर एड्रियन हिल का दावा है कि पांच महीने के भीतर ही कोरोना वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी। उम्मीदें बढ़ती है। देश के अंदर ही तीन लाख से अधिक रैपिड टेस्ट किट बन चुके हैं। स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के समय से ही भारत आत्मनिर्भरता की राह पर चल पडा था। उसी समय से यह सफर जारी है। जीवन के प्रति हम भारतवासियों का नजरिया भी कुछ अलग है। आत्मा कभी मरती नहीं। उसे न आग जला सकती है और न कोई शस्त्र काट या छेद सकता है। शरीर पुराने वस्त्र त्याग कर नये धारण करता है, यही मृत्यु और जन्म की कहानी है। इसी ने हमंे कोरोना जैसी बीमारी से लड़ने का जज्बा दिया। बीमारी की कोई दवा नहीं, फिर भी कोरोना को पराजित करने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। गत 20 अप्रैल को रिकॉर्ड 705 लोग स्वस्थ हुए थे।इसी महीने की 15 तारीख को 183 लोग स्वस्थ हुए थे तो अगले दिन यह संख्या 260 हो गयी थी। भारत में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 20417 लोग कोरोना से प्रभावित पाये गये थे और 3960 लोगों ने इस महामारी को पराजित कर दिया था। इसके साथ ही कोरोना संक्रमण से बचने के लिए दुनिया भर में लाकडाउन किया गया। लाकडाउन में पृथ्वी को संजीवनी मिली है। पर्यावरण के विशेषज्ञों का मानना है कि हवा और पानी को शुद्ध करने के लिए दुनिया भर की सरकारें जो काम वर्षों में नहीं कर पायीं, वो काम लाकडाउन ने एक महीने में ही कर दिया है। भारत में उद्योगों के बन्द होने से नदियां प्रदूषण मुक्त हो गयी हैं।ऋषिकेश में लाकडाउन से पूर्व 24 मार्च और 18 अप्रैल को गंगा नदी में जो सैंपल लिये गये, उनमें बहुत अंतर सामने आया। पहले गंगा में आक्सीजन की मात्रा 5.20 प्रति लीटर थी जो बढकर 6.50 प्रति लीटर हो गयी। दिल्ली एनसीआर समेत पूरे देश की हवा सांस लेने लायक हो गयी है ।देश के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल गाजियाबाद में एक्यूआई लाकडाउन की घोषणा वाले दिन 237 पर था जो 21 अप्रैल को घटकर102 पर आ गया। ध्यान रहे कि शून्य से 50 तक के एक्यूआई को अच्छा और 50 से 100 तक को संतोषजनक माना जाता है। दुनिया के कई देशों में औद्योगिक गतिविधियां ठप होने से ओजोन परत में बहुत सुधार हुआ है। नेचर पत्रिका में प्रकाशित नशु यह पता चला है। लाकडाउन के चलते ही दुनिया भर में सड़क, रेल जैसी परिवहन सेवाएं भी बहुत सीमित कर दी गयी हैं। इससे पृथ्वी में होने वाले कम्पन में भी कमी आयी है। यह कमी भी मामूली नहीं बल्कि 30 से 50 फीसदी तक है। इस प्रकार हवा और पानी जैसी प्राकृतिक धरोहरें तो शुद्ध होने लगीं लेकिन अपने को सबसे ज्यादा बुद्धिमान समझने वाले मानव और ज्यादा अशुद्ध हो गये हैं। चीन की सत्ता संभालने वाले कोरोना वायरस फैलने की बात छिपाते रहे। अपनी महाशक्ति पर घमण्ड करने वाले देशों ने एक वायरस के सामने घुटने टेक दिए।भारत में भी एक चिंताजनक बात यह देखी गयी कि साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का प्रयास किया जाने लगा। महाराष्ट्र में पालघर जिले के एक गांव में दो संन्यासियों समेत तीन लोगों की मावलिंचिंग में हत्या कर दी गयी। इसे साम्प्रदायिक रूप देने की कोशिश भी की गयी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी। पालघर में 16 अप्रैल को रात मुंबई से सूरत जा रहे कल्पवृक्ष गिरी, सुशील गिरी और वाहन चालक निलेश तेलगाडे की हत्या ग्रामीणों ने पीटकर कर दी जो अतिनिन्दनीय है और अपराध भी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने भ उद्धव ठाकरे से फोन पर बात करते हुए कहा कि दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए। श्री ठाकरे ने मुख्यमंत्री को बताया कि कुछ लोग गिरफ्तार किए गए हैं। महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने स्पष्ट किया है कि पालघर की घटना में जो लोग मारे गये व जिन्होंने हमला किया, वह अलग अलग धर्मों के नहीं थे। गृहमंत्री ने ट्वीट करके इस घटना को कोई साम्प्रदायिक रूप नहीं देने की भी चेतावनी दी है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी जमातियों ने कोरोना संक्रमण को फैलाने में जाने अनजाने आपराधिक कृत्य किया है लेकिन ऐसा करने वाले सिर्फ मुस्लिम सम्प्रदाय के ही नहीं, हिन्दू समुदायके लोग भी हैं। गत 22 अप्रैल को लखनऊ के सदर इलाके में लाकडाउन का उल्लंघन करने वाले लोगों को जब पुलिसकर्मी ने समझाने का प्रयास किया और न मानने पर चेतावनी दी तो वहां के लोगों ने पुलिसकर्मी को गली में घसीटकर पीटा। संबंधित थाने के इंस्पैक्टर मनोज कुमार ने बताया कि सिपाही की तहरीर पर मुस्तकीम,विक्की, समीउल्लाह और बब्बू के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। इसप्रकार की बातों पर गौर करने की जरूरत है। देश की गंगा जमुनी संस्कृति को बदनाम करने की कुचेष्टा तो की ही जा रही है। बात सउदी अरब जैसे कई मुस्लिम राष्ट्रराष्ट्रों तक कैसे पहुंच गयी। भारत में मुसलमानों की स्थिति क्या पाकिस्तान के मुहाजिरों और बलूचियों से भी बदतर है। इनके लिए सउदी अरेबिया कभी अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय जाने की बात नहीं करता। जाहिर है कि बात दोनो तरफ से बढ़ा चढ़ाकर की जा रही है लेकिन वे भूल रहे हैं कि कोरोना की तरह ही इसके भी वायरस एक बार शरीर में प्रवेश कर जाते हैं तो पूरी तरह नहीं निकल पाते।