वन क्षेत्र को बनाए रखने के लिए विलायती कीकर की छंटाई करना बेहतर जरुरी

सेंट्रल रिज से विलायती कीकर हटाने की योजना को दिल्ली सरकार से मंजूरी और 12. 21 करोड़ का बजट मिले हुए एक साल हो गया है, लेकिन अभी तक काम शुरू नहीं हो पाया। पांच सदस्यीय सलाहकार समिति इसे हटाने के तरीकों पर ही एकमत नहीं हो पा रही है। आखिर क्या है विवाद,

क्यों यह अभियान नहीं पकड़ पा रहा गति, क्या है विलायती कीकर से छुटकारा पाने का बेहतर उपाय, इन्हीं मुद्दों पर संजीव गुप्ता ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रति कुलपति, पर्यावरण अध्ययन विभाग के जनक, स्टेट बायोडायवर्सिटी काउंसिल के अध्यक्ष और जाने माने वनस्पति विज्ञानी प्रो. सी आर बाबू से लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश -:

सेंट्रल रिज को विलायती कीकर से किस तरह मुक्ति दिलाई जाएगी?

सेंट्रल रिज का कुल क्षेत्रफल 800 हेक्टेयर है। इसमें बुद्धा जयंती पार्क, तालकटोरा स्टेडियम और दिल्ली छावनी क्षेत्र आता है। इसमें सिर्फ 423 हेक्टेयर क्षेत्र ही ऐसा है जिसे पुन:स्थापित किया जाएगा। अभी तो इसी पर विचार किया जा रहा है कि इसे विलायती कीकर से मुक्ति कैसे दिलाई जाए। पहले विकल्प के तहत विलायती कीकर की कैनोपी को खोला जाएगा। उसके बाद नीचे की अन्य खरपतवार हटाएंगे।

यहां स्थानीय प्रजाति के पौधे लगाएंगे। यह पौधे जब बढ़ेंगे तो विलायती कीकर को छाया देंगे और वह सूरज की रोशनी के बगैर मरने लगेगा। दूसरा विकल्प यह है कि बहुत सारी लताएं विकसित की जाएंगी जो विलायती कीकर के ऊपर छा जाएंगी और वह मर जाएगा। इसके अलावा आसपास के क्षेत्र जैसे सरदार पटेल मार्ग के किनारे, जहां विलायती कीकर नहीं है, वहां पर स्थानीय प्रजाति के पौधों के साथ त्रिस्तरीय जंगल विकसित किया जाएगा।

तब क्या वजह है कि एक साल से ज्यादा होने के बावजूद यह कार्य शुरू नहीं हो पाया?

सलाहकार समिति के कुछ सदस्यों की आपत्ति है कि विलायती कीकर को जड़ समेत न हटाकर ऊपर से काटना-छांटना अस्थायी तरीका है। इससे तो हर तीन साल बाद फिर से कटाई छंटाई करने की नौबत आ जाएगी। देशज प्रजाति के जिन 10 पौधों को रिज पर लगाने का प्रस्ताव है, उनमें से भी पांच को दिल्ली की जलवायु के अनुकूल नहीं बताया जा रहा। यह भी कहा जा रहा है कि रिज क्षेत्र में नमी की जो स्थिति पहले से है, उसे छेड़ना तर्कसंगत नहीं है।

विलायती कीकर को जड़ समेत हटाने में क्या अड़चन है?

इसकी एक प्रमुख वजह दिल्ली वृक्ष अधिनियम 1994 है, जो किसी भी वृक्ष को जड़ समेत काटने की इजाजत नहीं देता। एक अन्य प्रमुख वजह यह कि किसी जमाने में विलायती कीकर दिल्ली का वन और हरित क्षेत्र बढ़ाने के लिए ही लगाया गया था। अगर इसे एक साथ जड़ से काट दिया गया तो वन और हरित क्षेत्र भी घट जाएगा जो वन विभाग और सरकार के स्तर पर भी स्वीकार्य नहीं है।

कटाई-छंटाई करके हटाने का कहीं कोई ट्रायल किया गया है क्या?
हमने बायोडायवर्सिटी पार्कों में भी इसका ट्रायल किया है और नार्दर्न रिज पर भी इसी प्रक्रिया के तहत विलायती कीकर हटाने का काम चल रहा है।

क्या दिल्ली में हरित क्षेत्र पर्याप्त है?
कहने को दिल्ली विश्व की सबसे हरित राजधानी है, लेकिन इसका हरित क्षेत्र संतुलित नहीं है। पर्यावरण संरक्षण के लिए हरित क्षेत्र का संतुलन भी बहुत आवश्यक है। कुल क्षेत्रफल का 33 प्रतिशत हरित क्षेत्र होना चाहिए जबकि यहां अभी 25 प्रतिशत भी नहीं है। जब तक ऐसा नहीं होगा, पर्यावरण संतुलन और जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों की प्राप्ति भी नहीं हो सकती।

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