पिघलते ग्लेशियरों की चपेट में आ सकते बिहार

के० एस० टी०,नई दिल्ली संवाददाता। ग्लोबल वार्मिंग का खतरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसी कड़ी में भारत, चीन और नेपाल में पिघलते ग्लेशियर भी अब समस्या का सबब बन गए हैं। 2009 के बाद पिछले 13 सालों के दौरान उक्त तीनों देशों के 25 झीलों और तालाबों ने 40 प्रतिशत से अधिक जल की वृद्धि दर्ज की गई है। इससे पांच भारतीय राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की स्टेट आफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2022,

 

इन फिगर्स रिपोर्ट के अनुसार जिन सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए खतरा बढ़ा है, वे हैं असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख। हालांकि यह केवल जल प्रसार में वृद्धि का ही विषय नहीं है। रिपोर्ट में प्रकाशित आंकड़े और भी चिंताजनक कहानी बयां करते हैं। रिपोर्ट बताती है कि 1990 और 2018 के बीच भारत के एक तिहाई से अधिक तटरेखा में कुछ हद तक कटाव देखा गया है। पश्चिम बंगाल सबसे बुरी तरह प्रभावित है,

 

जिसकी 60 प्रतिशत से अधिक तटरेखा कटाव के तहत है। रिपोर्ट के मुताबिक चक्रवातों की आवृत्ति और समुद्र के स्तर में वृद्धि और मानवजनित गतिविधियां जैसे बंदरगाहों का निर्माण, समुद्र तट खनन और बांधों का निर्माण तटीय क्षरण के कुछ प्रमुख कारण हैं। सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में हर चार नदी-निगरानी स्टेशनों में से तीन में भारी जहरीली धातुओं-सीसा, लोहा, निकल, कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम और तांबे की मात्रा का.

 

 

 

 

 

 

खतरनाक स्तर दर्ज किया गया है। 117 नदियों व सहायक नदियों में फैले एक-चौथाई निगरानी स्टेशनों में, दो या अधिक जहरीली धातुओं के उच्च स्तर की सूचना मिली है। गंगा नदी के 33 निगरानी स्टेशनों में से 10 में प्रदूषण का स्तर अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के वन क्षेत्र का 45 से 64 प्रतिशत 2030 तक जलवायु हाटस्पाट बनने की संभावना है। 2050 तक देश का लगभग पूरा वन क्षेत्र जलवायु हाटस्पाट बन सकता है। सीएसई की रिपोर्ट में कहा गया है,

जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान की गंभीरता 2085 में बढ़ने वाली है।” एक जलवायु हाटस्पाट ऐसे क्षेत्र को संदर्भित करता है जो जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों का सामना कर सकता है। रिपोर्ट से पता चला है कि भारत ने 2019-20 में पैदा हुए 35 लाख टन प्लास्टिक कचरे में से 12 प्रतिशत का पुनर्चक्रण किया और 20 प्रतिशत को जला दिया गया। इसमें कहा गया है कि शेष 68 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे के बारे में कोई सूचना नहीं है, जो संभवत, लैंडफिल में समाप्त हो गया होगा।

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