के० एस० टी०,कानपुर नगर संवाददाता। अखंड सौभाग्य के महापर्व के रूप में करवा चौथ व्रत का पारण 13 अक्टूबर को कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चंद्रोदया व्यापनी चतुर्थी को मनाया जाएगा। इस वर्ष करक चौथ अर्थात करवा चौथ का व्रत कृतिका नक्षत्र और सिद्ध योग में किया जाएगा। इसमें अखंड सुहाग के लिए सुहागिनें भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिक और चंद्रमा का पूजन करेंगी। करवा चाैथ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। करवा यानी मिट्टी का बर्तन और चौथ यानी चतुर्थी। अखंड सौभाग्य के इस महाव्रत में सुहागिनें निर्जला व्रत रखकर पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं।
चंद्रमा का पूजन श्रेष्ठकर-: पद्मेश इंस्टीट्यूट आफ वैदिक साइंसेस के संस्थापक केए दुबे पद्मेश ने बताया कि करवा चौथ में भगवान शिव और पार्वती माता का पूजन करना शुभ माना जाता है। अच्छे दांपत्य जीवन के लिए भगवान शिव और पार्वती माता की आराधना करनी चाहिए। वहीं, मानसिक बल के लिए चंद्रमा का पूजन श्रेष्ठकर होता है। यह महापर्व पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता है।
108 छिद्रयुक्त छलनी से करें दीदार-: उन्होंने बताया कि 13 अक्टूबर को कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 27 घंटे नौ मिनट तक है और कृतिका नक्षत्र 18 घंटे 41 मिनट तक है। जिसके बाद रोहिणी नक्षत्र है। करवा चौथ पूजन में 108 छिद्रयुक्त छलनी से चंद्रमा और सजना का दीदार करना चाहिए। चंद्रमा से 108 प्रकार की अमृत किरणें पृथ्वी पर आती है। जिससे पति को दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
पूजा में उपयोगी सामग्री और पूजन-: धूनी ध्यान केंद्र के आचार्य अमरेश मिश्र ने बताया कि मां पार्वती, भगवान शिव और गणपति महाराज की फोटो के साथ कच्चा दूध, कुमकुम, धूप, दीप, शक्कर, शहद, पुष्प, दही, मेहंदी, मिष्ठान, गंगाजल, चंदन, अक्षत, महावर, मेहंदी, चुनरी, बिछिया, चूड़ी, मिट्टी का टोंटीदार करवा, दीपक और बाती, शक्कर का बूरा, 108 छिद्रयुक्त छलनी, अक्षत, दाल, सुहाग की सामग्री, सिंदूर को थाल में सजाकर करवा चौथ कथा का श्रवण करना चाहिए। कथा का श्रवण करने के बाद भगवान का स्मरण करते हुए चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।