के० एस० टी०,कानपुर नगर संवाददाता। जोशीमठ भूस्खलन के मलबे पर बसा है। यही मलबा भूगर्भ में पानी का सतह पर दबाव बनने पर धीरे-धीरे खिसक रहा है। गनीमत है कि वर्तमान में वहां वर्षा या भूकंप नहीं आ रहे हैं, वरना हालात और बिगड़ सकते थे। सरकार को वहां से लोगों को विस्थापित करके उनके पुनर्वास का इंतजाम करना चाहिए और इसके बाद योजनाबद्ध रूप से पूरे क्षेत्र का अध्ययन कराकर नए सिरे से कवायद करनी चाहिए।
देव प्रयाग से ऊपर का पूरा हिमालयी क्षेत्र संवेदनशील-: आइआइटी के भू विज्ञानी प्रो. राजीव सिन्हा ने वर्ष 2021 में चमोली में आई आपदा के बाद कई माह तक उत्तराखंड क्षेत्र में ड्रोन सर्वे करने के बाद यह जानकारी दी है।, पिछले माह ही वह सर्वे करके लौटे हैं। उन्होंने बताया कि जोशीमठ के अपस्ट्रीम के साथ ही डाउनस्ट्रीम क्षेत्र का भी विस्तृत निरीक्षण किया है और जुटाए गए आंकड़ों का विश्लेषण कर रहे हैं।, इसके बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को भी देंगे।, प्रो. सिन्हा ने बताया कि जोशीमठ में जो भूस्खलन और भूमि-धंसाव से प्रभावित क्षेत्र है, उसकी वजह वहां वर्षों से आ रहे छोटे-छोटे भूकंप हैं। दरअसल, देव प्रयाग से ऊपर का पूरा हिमालयी क्षेत्र ही संवेदनशील है, क्योंकि वह भूस्खलन के मलबे से बना है।, मलबा अत्यधिक वर्षा या भूकंप आने पर बिखर जाता है और भूमि में दरारें पड़ जाती हैं।
इसी भूस्खलन का नतीजा थी चमोली में आई आपदा-: वर्ष 2021 में चमोली में आई आपदा भी इसी भूस्खलन का नतीजा था, जिसमें 200 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। प्रो. सिन्हा ने बताया कि जोशीमठ व आसपास का क्षेत्र भूकंप के जोन पांच में आता है, जो बेहद सक्रिय क्षेत्र है। भूमि के अंदर छोटे-छोटे भूकंप आने से भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील है। साथ ही यहां जो भी विकास हुआ, वह अनियोजित तरीके से हुआ है। तमाम मकान व भवन भूस्खलन के मलबे व भूमि की ढीली सतह पर खड़े कर दिए गए हैं। यही नहीं भूमि के भीतर जल जमाव होने से सतह पर दबाव पड़ता है तो यही मलबा फिर से खिसकता है।