अब तो जैसे हत्या की खबरों को रोजाना होने वाली आम आपरा धिक घटनाओं की तरह ही देखा जाने लगा है। ऐसी ज्यादातर घटनाओं में कानूनी या अन्य पहलू भी सामने आते हैं। मगर इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि बेहद मामूली बातें भी अब अक्सर ऐसी शक्ल अख्तियार कर ले रही हैं जिसमें पहले आपसी बहस या मारपीट होती है और फिर किसी की जान ले ली जाती है। दिल्ली के रोहिणी इलाके में.
एक विवाह समारोह के दौरान खाने की प्लेट को लेकर तनातनी के बाद कुछ युवकों ने वहीं खाने-पीने के प्रबंधन में लगे एक व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या कर दी। यानी जो बात सामान्य विवाद तक की वजह नहीं होनी चाहिए और अगर कोई दिक्कत पैदा हुई भी तो बहुत आसानी से उसका समाधान किया जा सकता था उस बात पर कुछ युवक इस कदर हिंसक हो गए कि उन्होंने पीट-पीट कर एक व्यक्ति की जान ले ली।
क्या इसे किसी सभ्य और संवेदनशील समाज की निशानी माना जा सकता है? विवाह जैसे खुशी के मौके पर हुई इस वारदात के बाद दो आरोपियों की गिरफ्तारी की खबर है। इस मामले में कानून अपना काम करेगा। मगर बेहद साधारण बातों पर हिंसा और हत्या तक कर देने वाले लोगों के भीतर इसी कानून का खौफ पहले क्यों नहीं हो पाता ताकि अपराध हों ही नहीं? दिल्ली के रोहिणी में हुई यह वारदात कोई.
पहली या अकेली घटना नहीं है। ऐसे मामले अक्सर सामने आने लगे हैं। ताजा घटना में महज खाने की प्लेट को लेकर हुई आपसी बहस का अपने स्तर पर या वहां मौजूद अन्य लोगों की मदद से समाधान निकाला जा सकता था। मगर इतनी-सी बात पर हत्या तक कर डालने वाले लोगों के सोचने-समझने का ढांचा क्या हो गया है या फिर उनके दिमाग पर ऐसा कौन-सा दबाव काम कर रहा होता है कि बिना सोचे-समझे वे.
इस कदर हिंसक हो जाते हैं? आज कल समाज की एक अफ सोसनाक तस्वीर यह बन गई है कि जब इस तरह किसी बात पर मारपीट की घटना होती है तो वहां मौजूद लोग मूकदर्शक होकर खड़े रहते हैं। बल्कि कई लोग मोबाइल कैमरे से वीडियो बनाने लगते हैं लेकिन सामूहिक रूप से दखल देकर पहले झगड़ा रोकने और बातचीत करने या फिर तुरंत पुलिस बुलाने की पहल नहीं की जाती। किसी भी समाज में.
इस तरह की निष्क्रियता बेहद चिंताजनक है। आखिर क्या वजह है कि ऐसे मामले आए दिन सामने आ रहे हैं जिनमें लोगों के भीतर अचानक पैदा हुई किसी परिस्थिति पर सोचने-समझने की क्षमता कम होती जा रही है? संवेदनाओं के छीजन की रफ्तार इतनी तेज क्यों है कि सड़क पर किसी वजह से वाहन छू जाने से लेकर शादी-ब्याह तक के मौके पर सामान्य-सी बातों पर भी कुछ लोग इस कदर बेलगाम हो जाते हैं कि.
उन्हें अपनी या किसी अन्य की जान जाने की भी परवाह नहीं होती? यहां तक कि उन्हें इस बात का भी खयाल नहीं होता कि आवेश में आकर मारपीट या फिर किसी की हत्या करने के बाद उनकी अपनी जिंदगी और भविष्य का क्या होगा! क्या लोगों को न सिर्फ दूसरों की बल्कि अपनी जिंदगी की अहमियत भी समझ में आनी बंद हो गई है?
विवेक का उपयोग करके शांति से किसी मसले का हल निकालने के बजाय बिना बात के आक्रामक या हिंसक रुख अख्तियार कर लेने से किसी निर्दोष व्यक्ति की जान जा सकती है मगर ऐसी संवेदनहीनता खुद अपनी जिंदगी भी तबाह कर देती है।