◆ लॉकडाउन के दौरान कोरोना काल में मुफ्त राशन मुहैया कराने की सरकार की योजना की सभी ने की सराहना
के० एस० टी०,कानपुर। कोरोना महामारी की देश में दस्तक के साथ ही सरकार ने इससे लड़ने के लिए कमर कस ली थी। ऐसे में इस भयावह संकट से शुरू होने वाली इस जंग में लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प प्रतीत हो रहा था।
अतः सरकार द्वारा भी आनन-फानन में इस विकल्प को ना सिर्फ चुना गया बल्कि इससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं से निपटने के रास्ते भी तलाशने शुरू कर दिये गए। जिसमें सबसे गंभीर समस्या दिहाड़ी मजदूरों के दो वक्त के निवाले की थी जिसे ध्यान में रखते हुए सरकार की ओर से मुफ्त राशन मुहैया कराए जाने का निर्णय लिया गया.
जो नवंबर तक इसी प्रकार से जारी रहने वाला है। सरकार के इस निर्णय की जितनी भी सराहना की जाए, वह कम है लेकिन दूसरी तरफ जब हम कानपुर शहर के सरकारी राशन गोदाम की स्थिति पर नजर डालते हैं तो राशन गोदाम का पूरा परिसर सुअर पालन का अड्डा प्रतीत होता है। जहां भारी मात्रा में सुअर मौजूद है जिनके दिन-भर के मल-मूत्र से पूरे परिसर में भयावह सड़ांध आती है।
इसके अलावा इन राशन गोदामों के ऊपर पड़े टीन शेड पूर्णतः क्षतिग्रस्त हो चुके हैं जिसके बाद बारिश के दौरान भारी मात्रा में अनाज जलभराव की वजह से सड़ जाता है। इन सभी कारणों की वजह से जब हमारे कदम इन राशन गोदामों के भीतर पड़े तो यकीन मानिए यदि इस सड़ांध को आम जनमानस को यदि एक क्षण के लिए महसूस भी करा दिया जाए.
तो आजीवन वह यहां रखे हुए राशन को खाना तो छोड़िए, हाथ लगाने की भी नहीं सोचेंगे। इतना ही नहीं हमारी नजर राशन गोदामों में चावल के साथ-साथ गेहूं की मौजूदगी पर भी पड़ी जिसके बाद मन में एक सवाल भी उठा कि पूरे विश्व में सबसे तेजी के साथ आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में उभरते.
भारत देश में क्या कोरोना काल में गेहूं का इतना अकाल पड़ गया था कि महामारी के दौर में बीते 3 माह तक गरीब की थाली को गेहूं से सूना रखा गया। जबकि चावल को सरकार के द्वारा प्राथमिकता दी गई। यह वही चावल है जिसे कई बीमारियों में डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक कई बार परहेज करने को कहा जाता है।
ऐसे में जिस वक्त दिहाड़ी मजदूर समेंत आम जनमानस के लिए रोटी और रोकथाम रही जरूरी तो चावल ही बना गरीब की थाली की मजबूरी……आखिर क्यों?