के० एस० टी०,कानपुर संवाददाता।चूं चूं करती आयी चिड़िया‚ दाल का दाना लायी चिड़िया’ जैसे बच्चों को गुदगुदाने वाले गानों और छत या आंगन पर अपनी तोतलाती आवाज में ‘चिर्रो उड़़’ कहने वाले बच्चों की सबसे प्रिय चिड़िया रानी अर्थात गौरैया अब न तो चूं चूं करती आती है और न ही घर या आंगन में फुदक फुदक कर बच्चों या बड़़ों को अपनी ओर आकर्षित ही करती है।
जब घरों में इनके रहने की जगह नहीं बची तो बेघर हुयी गौरैया तेजी से घटने लगीं। इन्हें बचाने की मुहिम शुरू हुयी और इसी के साथ शुरू हुआ प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस का आयोजन। विश्व गौरैया दिवस प्रकृति के अनमोल उपहार नन्हीं गौरैया का अस्तित्व बचाने के लिये चिंतन‚ प्रयास‚ संकल्प और शपथ लेने का दिन है।
वर्ष 2009 से पहले ही जब विश्व भर के पक्षी और पर्यावरण प्रेमी गौरैया के लगातार कम होते लगभग विलुप्त होने की स्थिति में आ जाने को लेकर चिंतित हुए और यह चिंताएं सार्वजनिक होने लगीं‚ तब ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसाइटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स’ ने इसे लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अध्ययन किये और इसे ‘रेड़ लिस्ट’ में ड़ाला।
पक्षी विज्ञानी कहते हैं कि भारत में आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किये गये एक अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में वर्ष 2009 तक 60 से 80 फीसद तक कमी आ गयी थी। इसके लिये शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में मनुष्यों के आवासों की बदलती स्थितियां‚ फसलों में घातक कीटनाशकों के प्रयोग और मोबाइल टावरों से होने वाले रेडि़एशन को जिम्मेदार माना गया है।
इस नन्हीं चिड़िया को बचाने के प्रयास शुरू हुए और 2010 में पहली बार विश्व गौरैया दिवस मनाया गया। प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को यह मनाया जाता है। हालांकि पक्षी प्रेमी इसे पर्याप्त नहीं मानते‚ उनका कहना है कि वर्ष में एक दिन कितनी भी बातें कर लें‚ कितने भी संकल्प ले लें या कितने भी प्रयास कर लें‚ गौरैया को बचाना या इनकी संख्या बढ़ना संभव नहीं है।
इसके लिये लोगों को जागरूक करना होगा। पर्यावरण के लिये गौरैया एक लाभप्रद पक्षी होने के साथ ही यह मनुष्यों का दोस्त माना जाने वाला पक्षी है। गौ गौरैया संरक्षण समिति के अध्यक्ष मनीष पाण्डे़य कहते हैं‚ लोगों को पूरे साल यह अभियान चला कर गौरैया के लिये अपने घरों में घोंसले के सुरक्षित और ठंडे़ स्थान उपलब्ध कराने होंगे।
गर्मी सहन न कर पाने वाले इस पक्षी के लिये गर्मियों के मौसम में घरों की छतों पर छायादार स्थान पर पीने का पानी और खाने के लिये दाना रखना होगा तभी जाकर इनकी संख्या बढ़ना कर हम इन्हें विलुप्त होने से बचा सकेंगे।