कानपुर में आइए सिद्धनाथ धाम तो सिद्धा देवी को भी कीजिए प्रणाम

के० एस० टी०,कानपुर संवाददाता। विविधता से लबरेज गंगा के घाटों में आज आपको ले चलते हैं जाजमऊ के सिद्धनाथ घाट। यहां दूसरी काशी के रूप में पूज्य बाबा सिद्धनाथ का धाम है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में भक्त दर्शन करते हैं, लेकिन बहुत कम को ही पता है कि बाबा के दर्शन के बाद कुछ दूर स्थित सिद्धा देवी को भी जरूर प्रणाम करना चाहिए। मान्यता है कि इससे बाबा जल्द मनोकामना पूरी करते हैं।

 

 

यहां गंगा भी तट के पास ही हैं। घाट पर सफाई है और निर्माण होने से शाम का नजारा रमणीक होता है। मंदिर प्रबंधन से जुड़ीं किरन निषाद बताती हैं कि प्राचीनकाल में राजा ययाति के किला क्षेत्र से जुड़े बाबा सिद्धनाथ धाम के मिलने की कहानी बड़ी कौतूहल भरी है। एक चरवाहा अपनी गायें चराने प्रतिदिन जंगल जाता था। एक गाय घर पहुंचती तो शाम को उसका दूध नहीं निकलता। इसपर उसने कई दिन तक गाय का पीछा किया।

एक दिन देखा कि गाय खड़ी है और उसका दूध निकल रहा है। पास पहुंचने पर नीचे शिवलिंग नजर आया। इसकी जानकारी जब राजा ययाति को हुई तो उन्होंने यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया। इसमें कई और देवी-देवताओं की लाल पत्थर की मूर्तियां स्थापित कराईं। राजा यहां 100 यज्ञ पूरे कराकर इसे काशी बनाना चाहते थे। उन्होंने 99 यज्ञ पूरे कराये। इसके बाद अंतिम यज्ञ में अचानक कुंड में हड्डी गिरने से वह खंडित हो गया।

इसके बाद लोग इस स्थान को दूसरी काशी की मान्यता देते हैं। राजा का किला ध्वस्त होने के बाद संरक्षण भी नहीं रहा। किरन के मुताबिक, उनके पूर्वज चुन्नीलाल निषाद व जगन्नाथ निषाद ने वर्ष 1971 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। कालांतर में लाल पत्थर की कुछ मूर्तियां खंडित हो गईं तो उन्हें गंगा में प्रवाहित करना पड़ा। मंदिर प्रबंधन उनके परिवार के हाथ में आने के बाद से हालात बदले हैं।

उनका कहना है कि सिद्धनाथ धाम जाते समय दायीं ओर रास्ते में कुछ दूर चलकर सिद्धादेवी का मंदिर है। यहां हजारों वर्ष पुरानी मूर्ति है। मान्यता है कि बाबा के दर्शन के बाद यहां जाने से मनोकामना जल्द पूरी होती है। अब गंगा किनारे घाट अच्छे हो रहे हैं। गंदगी नहीं है। घाटों पर और काम कराने की जरूरत है, जिससे जाजमऊ क्षेत्र की गंदगी गंगा में न जा सके और आने वाले भक्तों की परेशानी कम हो।

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