CSA कृषि विश्वविद्यालय में तैयार होंगे नैनो फर्टिलाइजर और फंगीसाइड
18 May
के० एस० टी०,कानपुर नगर संवाददाता।चंद्रशेखर आजाद (सीएसए) कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विज्ञानी व शोधार्थी फसलों के लिए जरूरी नैनो फर्टिलाइजर व नैनो फंगीसाइड भी तैयार करेंगे। साथ ही विभिन्न फसलों में मानकों के अनुसार कीटनाशक और उर्वरक का प्रयोग हो रहा है या नहीं, इसकी जांच करेंगे। इसके लिए विश्वविद्यालय स्थित शोध निदेशालय को उत्कृष्टता केंद्र बनाने की तैयारी हो रही है।
हाल ही में शासन को मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला (रेफरल लैब) विकसित करने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। सीएसए विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने बताया कि किसान जो फसलें उगाते हैं, उसमें उर्वरकों व कीटनाशकों के सही व सटीक इस्तेमाल की जांच करना बेहद जरूरी है। हम जो अनाज व अन्य फसलें निर्यात करते हैं, उसके लिए जांच और प्रमाण पत्र की जरूरत होती है। इसके लिए उत्पादों के.
सैंपल दिल्ली व अन्य राज्यों की लैब में भेजने पड़ते हैं। कई किसान फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए डीएपी, यूरिया व कीटनाशकों का अत्यधिक इस्तेमाल करते हैं। इनका फसलों पर पड़ रहे प्रभाव की जांच करना भी चुनौती है। साथ ही नए नैनो फर्टिलाइजर व नैनो फंगीसाइड के विकास को भी बढ़ावा देने की जरूरत है। इन्हीं सब कारणों के चलते विश्वविद्यालय की ओर से एक अत्याधुनिक मान्यता प्राप्त लैब बनवाने के.
लिए प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। संयुक्त निदेशक शोध डा. विजय यादव ने बताया कि लैब के लिए जल्द स्वीकृति मिलने की उम्मीद है। विभिन्न फसलों के लिए नैनो फर्टिलाइजर और नैनो फंगीसाइड बनाने के लिए शोध किया जाएगा। इसके साथ ही फसलों की गुणवत्ता की जांच भी आसानी से हो सकेगी। किसान कितनी मात्रा में रसायन, आक्सीटोसिन आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं, इसकी जांच करना आसान होगा।
लैब बनने से किसानों व शोधार्थियों को भी फायदा होगा। 100 नैनोमीटर या इससे छोटे कणों को नैनोकण कहते हैं। आकार काफी छोटा होने के कारण इन कणों के रसायनिक और भौतिक लक्षण तीव्र होते हैं। ये अपना असर तेजी से दिखाते हैं। फसलों में नैनो फर्टिलाइजर के प्रयोग से उर्वरक की बर्बादी और अधिकता से निजात मिलेगी। आकार में छोटे होने के कारण नैनो कण मिट्टी में आसानी से मिलकर फसलों को पोषक तत्व देंगे।
विज्ञानियों ने बताया कि किसी फसल में अगर सामान्य उर्वरक की 10 किलोग्राम मात्रा का इस्तेमाल होता है तो नैनो उर्वरक की अधिकतम एक किलोग्राम मात्रा की जरूरत होगी। इसी तरह नैनो फंगीसाइड भी फसलों की बीमारियों को खत्म करने में काफी मददगार होंगे। तरल रूप में होने के कारण इनका छिड़काव करना भी आसान होगा। किसानों की लागत व समय की बचत होगी।